बीजिंग ओलंपिक : सुशील ने रचा इतिहास, कुश्ती में दिलाया कांस्य (राउंडअप संशोधित)
बीजिंग, 20 अगस्त (आईएएनएस)। फ्रीस्टाइल पहलवान सुशील कुमार ऐसे समय में देश को कांस्य दिलाने में सफल रहे, जब कम से कम कुश्ती में कोई पदक की उम्मीद नहीं कर रहा था। बुधवार को पूरे देश का ध्यान मुक्केबाजों पर लगा था, तभी धूमकेतु की तरह आकर सुशील ने 66 किलोग्राम भार वर्ग में कजाकिस्तान के पहलवान लियोनिद स्पीरिदोनोव को पराजित कर इतिहास रच दिया।
सुशील की सफलता ने भारत को बीजिंग ओलंपिक में दूसरा पदक दिलाया। इसके अलावा ओलंपिक की कुश्ती स्पर्धा में भारत को दूसरा पदक मिला। 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में के. सी. जाधव ने फ्रीस्टाइल बेंटमवेट भार वर्ग में भारत के लिए पहली बार कांस्य पदक जीता था।
सुशील की इस जीत पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बधाई दी। अपने संदेश में राष्ट्रपति ने कहा, "मैं आपकी इस सफलता पर बेहद खुश हूं। मुझे आप पर गर्व है।" प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, "कांस्य पदक जीतने पर मैं आपको बधाई देता हूं। आने वाले दिनों में आपकी यह सफलता युवाओं को प्रेरित करेगी।"
इस कामयाबी के महज कुछ घंटों के भीतर सुशील के नाम एक करोड़ 85 लाख रुपये के पुरस्कार की घोषणा हो गई। सबसे पहले दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने अपना दिल बड़ा किया और सुशील को 50 लाख रुपये देने की घोषणा की। इसके बाद केंद्रीय खेलमंत्री एम.एस. गिल ने ओलंपिक खेल कोटे के तहत सुशील को 20 लाख रुपये देने की घोषणा की। सुशील भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) में कार्यरत हैं।
केंद्रीय रसायन, उवर्रक और इस्पात मंत्री रामविलास पासवान ने भी सुशील को 15 लाख रुपये देने की घोषणा की। पासवान की उदारता से प्रभावित होकर रेलमंत्री लालू यादव ने भी सुशील के नाम 55 लाख रुपये के पुरस्कार की घोषणा कर डाली।
सेल ने भी सुशील को 25 लाख रुपये देने की घोषणा की। इसके अलावा, हरियाणा सरकार ने सुशील कुमार को 25 लाख और महाराष्ट्र सरकार ने पांच लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की है।
अब सुशील के मुकाबले की बात करते हैं। सुबह के मुकाबले में सुशील उक्रेन के पहलवान एंद्रेई स्टाडनिक से अंकों के आधार पर हार गए थे, लेकिन फाइनल में स्थान बनाने के साथ स्टाडनिक सुशील को बीजिंग में अपनी चुनौती बरकरार रखने का मौका दे गए।
सुशील को यह मौका इसलिए मिला, क्योंकि उनके साथ के सभी पहलवान भी उन्हीं की तरह फाइनल में पहुंचने वाले पहलवानों से हार गए थे। लिहाजा रिपैकेज (एक ऐसा दौर जहां कम अंतर से हारे खिलाड़ी को अगले दौर में जाने का मौका मिलता है) के तहत सुशील को तीन और पहलवानों से लड़ने का मौका मिला और उन्होंने अपने तीनों मुकाबले जीतकर भारत के लिए कांस्य पदक सुरक्षित किया।
मुकाबले के बाद 25 वर्षीय सुशील ने कहा, "मैं सुबह का मुकाबला भी जीत सकता था, लेकिन भाग्य ने मेरा साथ नहीं दिया और उक्रेन के पहलवान फाइनल में पहुंचने में सफल रहे। हालांकि रिपैकेज से मुझे राहत मिली। अगले तीन मुकाबले मेरे लिए कठिन थे। मेरा करियर मेरे गुरु सतपाल सिंह के नाम है। मैं यह पदक उनके नाम करता हूं।"
पहला मुकाबला जीतने के बाद सुशील को यह जानने में लगभग एक घंटे 40 मिनट लगे कि वे मुकाबले में बने हुए हैं या फिर बाहर हो गए हैं। जब सेमीफाइनल में स्टाडनिक ने स्पीरिदोनोव को हरा दिया, तब यह साफ हो सका कि वे रिपैकेज में शामिल हो सकते हैं।
रिपैकेज के पहले दौर में सुशील ने अमेरिका के डाउग श्वाब को पराजित किया और फिर दूसरे दौर में उन्होंने बेलारूस के अल्बर्ट बैतीरोव को धूल चटाई। तीसरे और आखिरी मुकाबले में वह स्पीरिदोनोव को हराकर पदक पाने में सफल रहे।
तीन बार के एशियाई चैंपियन और भारतीय टीम के प्रबंधक करतार सिंह सुशील की सफलता से बेहद खुश दिखे। उन्होंने कहा, "भारतीय कुश्ती के लिए यह महान सफलता है। इससे इस खेल को काफी बढ़ावा मिलेगा।"
एथेंस ओलंपिक में 14वें स्थान पर रहे सुशील एकमात्र भारतीय पहलवान हैं जिन्होंने सितंबर में अजरबेजान में आयोजित विश्व चैंपियनशिप के माध्यम से ओलंपिक में खेलने की योग्यता हासिल की थी। विश्व चैंपियनशिप में वे सातवें स्थान पर रहे थे। इसके बाद उन्होंने कोरिया में आयोजित एशियाई चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था।
कांस्य पदक जीतकर सुशील ने अपने गांव बोपराला को विश्व कुश्ती मानचित्र में स्थापित कर दिया है। पश्चिमी दिल्ली के नजफगढ़ के पास स्थित इस गांव के लोग आज खुद पर गर्व कर रहे हैं। आलम यह है कि पूरा बोपराला जश्न में डूबा है। गांव का हर घर सुशील को अपना बेटा बता रहा है।
एमटीएनएल में ड्राइवर के पद पर कार्यरत सुशील के पिता दीवान सिंह ने कहा कि उनके बेटे ने उनसे स्वर्ण का वादा किया था, इसे लेकर तो सुशील थोड़े निराश होंगे, लेकिन उनके बेटे की इस जीत ने उनके गांव का नाम रोशन कर दिया।
दीवान सिंह ने बताया कि वह खुद भी कुश्ती के दीवाने थे, लेकिन परिवार की खस्ताहाल स्थिति ने उन्हें अपनी दीवानगी से अलग कर दिया। अपने शौैक को परिस्थिति की बलि चढ़ते देख दीवान सिंह ने ठान लिया था कि वे अपने बेटे को इस हाल में नहीं पहुंचने देंगे। दीवान सिंह ने कहा, "सीमित संसाधनों के बावजूद मैंने हमेशा चाहा कि मेरा बेटा देश का शीर्ष पहलवान बने। आज मैं बेहद खुश हूं। मेरे बेटे ने मेरा सपना पूरा कर दिया।"
खुशी के मौके पर दीवान सिंह ने कुश्ती कोच सतपाल सिंह और लंबे समय तक सुशील के कोच रहे यशबीर सिंह के योगदान को याद किया। दीवान सिंह के मुताबिक यशबीर ने ही सबसे पहले उनके बेटे के अंदर की प्रतिभा को पहचाना था।
दीवान सिंह ने कहा, "इन दो लोगों के अलावा पूरे गांव ने मेरे बेटे को प्रोत्साहित किया है। यही कारण है कि आज पूरा गांव मेरे बेटे की जीत पर जश्न मना रहा है।" और शायद यही कारण है कि सुशील ने अपना पदक अपने गुरुओं सतपाल और यशबीर को समर्पित किया।
यशबीर ने आईएएनएस को बताया, "सुशील कुश्ती में इस तरह रमे कि उन्होंने इसका जुनून कभी कम नहीं होने दिया। सिर्फ वही लोग यह समझ सकते हैं कि सुशील में ओलंपिक पदक जीतने की क्षमता थी, जिन्होंने उन्हें पटियाला में कड़ी मेहनत करते देखा है। यह अलग बात है कि कुश्ती में कोई भी पदक की आशा नहीं कर रहा था।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।