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बीजिंग ओलंपिक : सुशील ने बोपराला का नाम अमर कर दिया

By Staff
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बीजिंग, 20 अगस्त (आईएएनएस)। बीजिंग ओलंपिक की कुश्ती स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर भारतीय पहलवान सुशील कुमार ने अपने गांव बोपराला को विश्व कुश्ती मानचित्र में स्थापित कर दिया है।

पश्चिमी दिल्ली के नजफगढ़ के पास स्थित इस गांव के लोग आज खुद पर गर्व कर रहे हैं। करें भी क्यों नहीं, आखिर उनकी माटी के एक लाल ने उनके गांव का नाम रोशन जो किया है। आलम यह है कि पूरा बोपराला जश्न में डूबा है। गांव का हर घर सुशील को अपना बेटा बता रहा है।

एमटीएनएल में ड्राइवर के पद पर कार्यरत सुशील के पिता दीवान सिंह ने कहा कि उनके बेटे ने उनसे स्वर्ण का वादा किया था, इसे लेकर तो सुशील थोड़े निराश होंगे, लेकिन उनके बेटे की इस जीत ने उनके गांव का नाम रोशन कर दिया।

दीवान सिंह ने बताया कि वह खुद भी कुश्ती के दीवाने थे, लेकिन परिवार की खस्ताहाल स्थिति ने उन्हें अपनी दीवानगी से अलग कर दिया। अपने शौैक को परिस्थिति की बलि चढ़ते देख दीवान सिंह ने ठान लिया था कि वे अपने बेटे को इस हाल में नहीं पहुंचने देंगे।

दीवान सिंह ने कहा, "सीमित संसाधनों के बावजूद मैंने हमेशा चाहा कि मेरा बेटा देश का शीर्ष पहलवान बने। आज मैं बेहद खुश हूं। मेरे बेटे ने मेरा सपना पूरा कर दिया।"

खुशी के मौके पर दीवान सिंह उन लोगों को याद करना नहीं भूले जिन्होंने उनके बेटे की मदद की है। दीवान सिंह ने खासतौर पर कुश्ती कोच सतपाल सिंह और लंबे समय तक सुशील के कोच रहे यशबीर सिंह का नाम लिया। दीवान सिंह के मुताबिक यशबीर ने ही सबसे पहले उनके बेटे के अंदर की प्रतिभा को पहचाना था।

दीवान सिंह ने कहा, "इन दो लोगों के अलावा पूरे गांव ने मेरे बेटे को प्रोत्साहित किया है। यही कारण है कि आज पूरा गांव मेरे बेटे की जीत पर जश्न मना रहा है।" और शायद यही कारण है कि सुशील ने अपना पदक अपने गुरुओं सतपाल और यशबीर को समर्पित किया।

यशबीर ने आईएएनएस को बताया, "सुशील कुश्ती में इस तरह रमे कि उन्होंने इसका जुनून कभी कम नहीं होने दिया। सिर्फ वही लोग यह समझ सकते हैं कि सुशील में ओलंपिक पदक जीतने की क्षमता थी, जिन्होंने उन्हें पटियाला में कड़ी मेहनत करते देखा है। यह अलग बात है कि कुश्ती में कोई भी पदक की आशा नहीं कर रहा था।"

यशबीर ने कहा कि मेरे अलावा बहुत कम लोग ही यह समझ सकते हैं कि सुशील की सफलता में उनके पिता का क्या योगदान है। उन्होंने कहा, "ड्राइवर जैसे मामूली पद पर काम कर रहे होने के बावजूद दीवान सिंह ने अपने बेटे के लिए दूध, घी और ताजी सब्जियों की कभी कमी नहीं होने दी।"

सुशील का परिवार मानता है कि पूरे गांव की दुआ की वजह से ही आज उनका बेटा यह सम्मान हासिल करने में सफल रहा है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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