कश्मीरियों की राय: मुशर्रफ को तो जाना ही था
श्रीनगर, 19 अगस्त (आईएएनएस)। पाकिस्तान के राष्ट्रपति पद से परवेज मुशर्रफ के इस्तीफे पर जम्मू-कश्मीर में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। घाटी में ज्यादातर लोगों की यही राय है कि मुशर्रफ के जाने से पाकिस्तान के भविष्य के नेताओं को अमेरिका के साथ रिश्तों को लेकर सीख लेनी चाहिए।
श्रीनगर, 19 अगस्त (आईएएनएस)। पाकिस्तान के राष्ट्रपति पद से परवेज मुशर्रफ के इस्तीफे पर जम्मू-कश्मीर में मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। घाटी में ज्यादातर लोगों की यही राय है कि मुशर्रफ के जाने से पाकिस्तान के भविष्य के नेताओं को अमेरिका के साथ रिश्तों को लेकर सीख लेनी चाहिए।
पेशे से प्राध्यापक मुजफ्फर अहमद का कहना है, 'मुशर्रफ एक तानाशाह थे और उनको जाना ही था। बुश के आशीर्वाद से वह शासन कर रहे थे और जब उनको मदद की सबसे ज्यादा जरूरत थी तो बुश ने ही उनका साथ नहीं दिया।'
घाटी में लोगों का मानना है कि मुशर्रफ ने पहले के पाकिस्तानी तानाशाहों की तरह अमेरिकियों पर बहुत ज्यादा भरोसा किया।
कई कश्मीरी यह भी मानते हैं कि मुशर्रफ के इस्तीफे से पाकिस्तान में लोकतंत्र को बल मिलेगा।
जमात-ए-इस्लामी पार्टी के कार्यकर्ता शब्बीर अहमद का कहना है कि मुशर्रफ का शासन असंवैधनिक था, क्योंकि नवाज शरीफ की चुनी हुई सरकार का उन्होने तख्तापलट किया था। शबीर आगे कहते हैं कि मुशर्रफ जैसा हर तानाशाह यही कहता है कि उसने अपने देश के भले के लिए तख्तापलट किया था।
45 वर्षीय इंजीनियर सज्जाद अहमद अहमद के मुताबिक अमेरिकी सरकार बिना स्वार्थ के किसी का समर्थन नहीं करती।
बहुत सारे लोगों का यह भी मानना है कि मुशर्रफ पर मुकदमा चलना चाहिए, क्योंकि उन्होंने अपने ही लोगों को मरवाया।
एक स्थानीय समाचार पत्र के संपादक बशीर मंजर का कहना है कि मुशर्रफ ने अपने ही लोगों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की और उन्होंने अमेरिका को पाकिस्तान में लोगों को पकड़ने और जेल में डालने की खुली छूट दी।
उधर, अमरनाथ जमीन पर उठे विवाद के कारण मुशर्रफ के इस्तीफे का असर राज्य के अलगाववादी और मुख्यधारा के राजनेताओं पर देखने को नहीं मिला।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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