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पाक के लिए व्यापार मार्ग खोलने से भरेंगे कश्मीरियों के घाव:सज्जाद लोन

By Staff
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श्रीनगर, 18 अगस्त (आईएएनएस)। अमरनाथ भूमि विवाद को लेकर जम्मू क्षेत्र में की गई कथित आर्थिक नाकेबंदी का कश्मीरियों पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है। साथ ही कश्मीर घाटी में हो रहे लगतार विरोध प्रदर्शनों के कारण लोगों के बीच 'अलगाववादी मानसिकता' को एक बार फिर प्रबल कर दिया है। यह कहना है एक कश्मीरी नेता का।

श्रीनगर, 18 अगस्त (आईएएनएस)। अमरनाथ भूमि विवाद को लेकर जम्मू क्षेत्र में की गई कथित आर्थिक नाकेबंदी का कश्मीरियों पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा है। साथ ही कश्मीर घाटी में हो रहे लगतार विरोध प्रदर्शनों के कारण लोगों के बीच 'अलगाववादी मानसिकता' को एक बार फिर प्रबल कर दिया है। यह कहना है एक कश्मीरी नेता का।

पीपुल्स कांफ्रेस के चेयरमैन सज्जाद लोन चाहते हैं कि नई दिल्ली को कश्मीर के बारे में एक 'दूरदर्शी नीति' बनाने की जरूरत है। अलगाववादियों में उदार विचार रखने वाले नेता सज्जाद अपने पिता अब्दुल गनी लोन की हत्या के बाद आंदोलन में उतरे। उनके पिता की आतंकवादियों ने 2002 में हत्या कर दी थी।

श्रीनगर स्थित अपने आवास पर सज्जाद ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "समस्या के समाधान के लिए सीमा पार व्यापार को खोलना और कश्मीरियों के साथ एक समय सीमा के भीतर बातचीत कर समस्या का समाधान निकाला जाना चाहिए।"

सज्जाद को लगता है कि हड़तालों और कर्फ्यू के कारण भूखमरी और आर्थिक गतिविधियों के बाधित होने का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि कश्मीरियों की मानसिकता को अब बदला नहीं जा सकता है और एक वैकल्पिक व्यापार मार्ग को खोले बिना उनके घावों को नहीं भरा जा सकता।

उन्होंने कहा कि अमरनाथ जमीन विवाद से जम्मू के हिंदुओं या मुस्लिमों का कुछ लेना देना नहीं है। यह मुस्लिम मेजबानों और हिंदू अतिथियों के बीच हस्तक्षेप के खिलाफ प्रदर्शन है।

सन 1850 से अमरनाथ यात्रा चल रही है और पीढ़ियों से कश्मीरी जनता हिंदुओं के साथ अपने मेहमान की तरह व्यवहार करती आ रही है। उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अमरनाथ श्राइन बोर्ड का गठन हिंदुओं और मुसलमानों के बीच के खूबसूरत रिश्तों को खत्म करना और बांटना था।

जमीन का आवंटन कश्मीरी जनता, राज्य सरकार और अमरनाथ ट्रस्ट के बीच का मामला है।

उन्होंने कहा कि इस विवाद में जम्मू कहां से आता है। जम्मू विवाद का हिस्सा नहीं है। उसने कभी यात्रा का आयोजन नहीं किया। मुश्किल से एक या दो फीसदी श्रद्धालु जम्मू से आते हैं।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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