प्राचीन ग्रंथों के उपयोग को बढ़ावा दे रहे सर्वोच्च न्याायलय के एक न्यायाधीश
राणा अजीत
राणा अजीत
नई दिल्ली, 17 अगस्त (आईएएनएस)। प्राचीन भारतीय मीमांसा सूत्रों को सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश मरक ड्ेय काटजू बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं।
अदालती कार्यवाहियों के दौरान अपनी असामान्य टिप्पणियों और गैर परम्परागत फैसलों के प्रसिद्ध न्यायमूर्ति काटजू ने न्यायाधीशों और वकीलों द्वारा इन प्राचीन ग्रंथों की उपेक्षा किए जाने पर दुख प्रकट किया।
उन्होंने कहा,"हमारी अदालतों में वकील पश्चिमी न्यायविदों मैक्सवेल और क्राइस के उद्धरण पेश करते हैं, लेकिन कोई भी मीमांसा सूत्रों का उल्लेख नहीं करता। अधिकांश वकीलों ने तो इनके अस्तित्व के बारे में सुना भी नहीं है।"
उन्होंने इस बात पर भी दुख प्रकट किया कि उनके अतिरिक्त कोई अन्य न्यायाधीश कानून की व्याख्या करने के लिए मीमांसा सूत्रों का उल्लेख नहीं करता।
काटजू ने बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सर जान एज ने सौ से अधिक साल पहले 1892 में बेनी प्रसाद बनाम हरदाई बीबी मामले के अपने निर्णयों में प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों का उपयोग किया था।
उनका कहना है कि मूल रूप से धार्मिक कार्यो विशेषकर यज्ञों की व्याख्या के लिए लिखे गए इन ग्रंथों के विवेकपूर्ण और तार्किक होने की वजह से उनका उपयोग कानून, दर्शन और व्याकरण के क्षेत्रों में भी होने लगा। उनके अनुसार इन ग्रंथों में सभी विषयों का ज्ञान उपलब्ध है और ये हमारे पूर्वजों की महान बौद्धिक विरासत है।
काटजू ने पांचवी सदी ईसा पूर्व के जैमिनि सूत्र, विज्ञानेश्वर के ग्रंथ मिताक्षरा, दायभाग के लेखक जीमूतवाहन आदि ग्रंथों का उल्लेख किया।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।