रिश्तों की डोर ने तोड़ दी मजहब की दीवार
झांसी, 16 अगस्त (आईएएनएस)। रिश्तों की डोर अगर मजबूत हो तो मजहब की दीवार खुद ब खुद गिर जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि दिल से रिश्ते बनाने वालों के लिए मजहब कोई मायने नहीं रखता, वे तो दिल की आवाज को ही इबादत और पूजा मानते हैं। इसकी मिसाल हैं शब्बीर खान और नीता भार्गव।
दोनों के मजहब अलग-अलग हैं मगर रिश्ता भाई-बहन का है। रक्षाबंधन के मौके पर नीता द्वारा शब्बीर की कलाई पर बांधा जाने वाला रेशम का धागा उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो मजहब के नाम पर सियासत करते हैं।
बात कोई ढाई दशक पुरानी है जब नीता भार्गव के भाई राकेश भार्गव रेलवे में तैनात थे। उनके दोस्त शब्बीर खान का घर पर आना जाना था। यह दोस्ती पारिवारिक रिश्तों में बदल चली। रक्षाबंधन के मौके पर नीता ने राकेश को राखी बांधी तो उन्होंने शब्बीर की कलाई पर भी राखी बांधकर अपना भाई बना लिया। तब से शुरू हुआ यह सिलसिला आज भी जारी है।
नीता ने शब्बीर को जब राखी बांधना शुरू किया था तब उनकी शादी नहीं हुई थी। शादी के बाद भी भाई बहन का यह रिश्ता बदस्तूर चला आ रहा है। रक्षाबंधन के दिन नीता अपने मायके आती हैं और शब्बीर वहां जाकर राखी बंधवाते हैं। इनता ही नहीं दोनों परिवारों में किसी भी सामान की खरीदारी से लेकर रिश्तों को तय करने में भी इनकी भूमिका परिवार की तरह रहती है।
शब्बीर खान और भार्गव परिवार आपस में कुछ इस तरह घुल मिल गए हैं कि उनमें कोई फर्क नजर नहीं आता। शब्बीर खान बताते हैं कि उन्होंने अपनी बहन नीता भार्गव की मां को अकेले ले जाकर कई तीर्थ यात्राएं भी कराई हैं।
मजहब के नाम पर लड़ाने वालों के सवाल पर शब्बीर खान कहते हैं कि भगवान तथा खुदा एक हैं मगर सियासी लोगों ने उसे बांट दिया है। उन पर इन बातों का कोई असर नहीं पड़ता। नीता की छोटी बहन की शादी में तो शब्बीर खान ने पूरी तरह भाई की भूमिका निभाई थी। वहीं नीता भी यही कहती है कि शब्बीर उनका भाई है, उसका मजहब क्या है इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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