जमींदोज की जा रही है आगरा की विरासत
आगरा, 12 (आईएएनएस)। आगरा की पहचान सिर्फ आलीशान मुगलिया मकबरे व किले ही नहीं बल्कि दूसरे शाही महल भी हैं, लेकिन इनमें से कई महलों का वजूद मिट्टी में मिलता जा रहा है। बचे-खुचे ऐतिहासिक व पुराने महलों को बचाने की शहर के लोगों की मुहिम थोड़ी रंग तो ला रही है, पर यह संघर्ष आसान नहीं है।
आगरा, 12 (आईएएनएस)। आगरा की पहचान सिर्फ आलीशान मुगलिया मकबरे व किले ही नहीं बल्कि दूसरे शाही महल भी हैं, लेकिन इनमें से कई महलों का वजूद मिट्टी में मिलता जा रहा है। बचे-खुचे ऐतिहासिक व पुराने महलों को बचाने की शहर के लोगों की मुहिम थोड़ी रंग तो ला रही है, पर यह संघर्ष आसान नहीं है।
शहर के लोग इन इमारतों को शहर की खास पहचान और शानो-शौकत से जोड़कर देखते हैं। यही वजह है कि इन्हें बुलडोजरों से बचाने की उनकी कोशिशें जोर पकड़ने लगी हैं। खासकर, ऐसे लोग जो इन मकानों में रह रहे है, उनके लिए तो यह लड़ाई वजूद की जंग बन गई है। पिछले सप्ताहांत संस्कृति मंत्री अंबिका सोनी के हस्तक्षेप से शहर की एक पहचान भरतपुर हाउस का वजूद तो बच गया, लेकिन चिंता की बात यह है कि कई दूसरी इमारतों पर भू-माफिया व भवन-निर्माताओं की लालची नजर लगी हुई है।
शहर के खंडारी इलाके स्थित भरतपुर हाउस 150 वर्ष से भी अधिक पुराना है। एक बिल्डर ने दो महीने पहले इस पांच मंजिला इमारत को उजाड़ने की कोशिश की थी, पर स्थानीय लोगों के दबाव में उसे पीछे हटना पड़ा। अब जिला प्रशासन और राज्य पुरातत्व विभाग ने इसे धरोहर के तौर पर संरक्षित करने का फैसला किया है। वैसे, इस इमारत की तरह दूसरी कई इमारतें सौभाग्यशाली नहीं रहीं। आज जयपुर हाउस, वर्दमान हाउस और आवागढ़ हाउस जैसी ऐतिहासिक इमारतोंे का वजूद मिट चुका है, जबकि जाट हाउस और जटनी का बाग जैसी कई धरोहरों पर खतरा मंडरा रहा है। स्थानीय इतिहासकार राजकुमार शर्मा राजे कहते हैं, "इन धरोधरों को बचाना जरूरी है, क्योंकि वे कई स्थापत्य शैलियों के नमूने एवं शहर की पहचान हैं।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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