कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को कम करने में लगे हैं शोधकर्ता
लंदन, 7 अगस्त (आईएएनएस)। कीमोथेरेपी (कैंसर की एक चिकित्सा पद्धति) के दुष्प्रभावों को कम करने में प्रयासरत शोधकर्ता इन दिनों यह पता लगाने में व्यस्त हैं कि आखिर ये किस तरह घातक ट्यूमरों को नष्ट करने में मदद करते हैं।
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के जीवन विज्ञान विभाग के स्टीफन टेलर और कैरेन गास्कोइजन ने अपने शोध के लिए स्तन अथवा गर्भाशय के कैंसर में इस्तेमाल होने वाली एंटी-मिटोटिक चिकित्सा पद्धति का विधिवत अध्ययन प्रारंभ किया।
गौरतलब है कि एंटी-मिटोटिक पद्धति में 'टैक्सोल' नामक रसायन का इस्तेमाल किया जाता है, जो आगे चलकर तंत्रिकाओं को स्थायी नुकसान पहुंचा सकता है या उंगलियों की संवेदनक्षमता नष्ट कर सकता है।
टेलर ने कहा, "तंत्रिकाओं पर इनका नुकसान कम करने के लिए एंटी-मिटोटिक दवाओं की नई किस्म की खोज की जा रही है, लेकिन हमें यह देखना होगा कि क्या नई दवाएं ट्यूमर पर भी समान रूप से असरकारक होंगी।"
शोधकर्ताओं ने पाया कि अलग-अलग तरह के ट्यूमर की कोशिकाएं इन दवाओं पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देती हैं। शोधकर्ताओं का प्रयास अब ऐसी एंटी-मिटोटिक दवा बनाने का है, जो कैंसर ट्यूमर पर अधिकतम असरकार हो।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।