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करियर : श्रव्य-विज्ञान में तलाशें रोजगार

By Staff
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नई दिल्ली, 6 अगस्त (आईएएनएस)। श्रव्य-विज्ञान व्यवसाय उन लोगों को नया जीवन देता है, जो श्रवण तथा वाक् संबंधी समस्याओं से ग्रस्त हैं। आयुर्विज्ञान के विकास और प्रगति के साथ श्रव्य-वैज्ञानिकों तथा वाक्-चिकित्सकों की भूमिका को अत्यधिक बल मिला है।

यद्यपि भारत बढ़-चढ़कर यह दावा नहीं कर सकता है कि यहां अनेक वाक्-चिकित्सक व श्रव्य-वैज्ञानिक हैं। यहां अर्ध-चिकित्सीय क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं। बुनियादी तौर पर श्रव्य-वैज्ञानिक का कार्य वाक् और श्रवण त्रुटियों का निदान तथा प्रवाह में बोलने एवं स्वर के उतार-चढ़ाव की दृष्टि से उपयुक्त चिकित्सा करना है।

मस्तिष्क द्वारा सही प्रकार से कार्य न करने, मानसिक अवरोध तथा चोट के कारण उत्पन्न हकलापन, देर से बोलने, बाल्यावस्था में वाक् विकारों जैसी समस्या को श्रव्य-वैज्ञानिक ही सुलझाता है। इनका विदर तालू, श्रवण विकार तथा स्वर संबंधी ऐसी समस्याओं से वास्ता पड़ता है जिनके लिए विशेष उपचार की जरूरत होती है।

श्रव्य-वैज्ञानिक आडियोमीटर की सहायता से श्रवण दोष का आकलन करते हैं तथा वाक्-चिकित्सक वाक् भाषा प्रशिक्षण के लिए वाणी संबंधी उपकरण का इस्तेमाल करता है। संकेत भाषा, होंठों से बात समझना, स्वर संबंधी व्यायाम जैसी तकनीकों का इस उपचार में प्रयोग किया जाता है। वाक्-चिकित्सक तथा श्रव्य-वैज्ञानिक का कार्य चुनौती भरा होता है। इसके लिए धर्य, समर्पण भाव, तर्क शक्ति और सूक्ष्म अवलोकन की आवश्यकता होती है। यदि रोगी बच्चा है तो चिकित्सक को रोगी के परिवार और स्कूल टीचर के साथ निरंतर संपर्क बनाए रखना है, ताकि चिकित्सक और मनोवैज्ञानिक रोगी की प्रगति जानने के लिए जानकारी ले-दे सकें।

अस्पताल और पुनर्वास केंद्रों में श्रव्य-वैज्ञानिक तथा वाक्-चिकित्सक के लिए पर्याप्त अवसर मौजूद हैं। इन्हें सरकारी अस्पतालों में अन्य डाक्टरों के समान वेतन और भत्ते मिलते हैं। प्राइवेट अस्पताल में रोगी के साथ प्रत्येक मीटिंग (विजिट) के लिए पांच सौ से एक हजार रुपये तक फीस ली जाती है। श्रव्य-वैज्ञानिक अपना क्लीनिक खोलकर प्राइवेट प्रैक्टिस भी करता है।

प्राइवेट व्यवसायी के लिए कोई आय सीमा नहीं है। स्कूलों में मूक-बधिर बच्चों के अर्ध-चिकित्सीय उपचार के लिए श्रव्य-वैज्ञानिकों की जरूरत होती है।

इस क्षेत्र में रुचि रखनेवाले व्यक्ति स्नातक स्तर तक पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं। तीन वर्ष का बीएस-सी. पाठ्यक्रम होता है, लेकिन कक्षा बारहवीं तक विज्ञान विषयों का होना जरूरी है। देश के अनेक संस्थानों में स्नातकोत्तर डिग्री भी दिलाई जाती है। श्रव्य-विज्ञान या वाक्-चिकित्सा का विदेशों में व्यापक क्षेत्र है।

संयुक्त राज्य में विशेषज्ञता पाठ्यक्रम कराए जाते हैं, जहां इस क्षेत्र में निरंतर शोध कार्य किया जाता है तथा प्रतिदिन नई प्रौद्योगिकी की शुरुआत होती है। तथापि हमारे देश में ये सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। प्रौद्योगिकी उन्नयन का इस क्षेत्र में अत्यधिक महत्व है। प्राइवेट प्रैक्टिस के रूप में आपको भारी पूंजी लगानी होगी।

श्रव्य-विज्ञान या वाक्-चिकित्सा में गोली खिलाने या इंजेक्शन लगाने का कार्य नहीं होता है। व्यक्ति को बड़े ध्यान से रोगी का अध्ययन करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति में ध्वनि/बोलने की क्षमता जाग्रत करना प्रोफेशन मात्र नहीं है, बल्कि बहुत बड़ी चुनौती है।

(करियर संबंधी और अधिक जानकारी के लिए देखिए ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली से प्रकाशित ए. गांगुली और एस. भूषण की पुस्तक "अपना कैरियर स्वयं चुनें"।)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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