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करियर : विधि के क्षेत्र में तलाशें रोजगार

By Staff
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नई दिल्ली, 2 अगस्त (आईएएनएस)। भारत में विधि के बारे में प्राय: यह सोचा जाता है कि इस क्षेत्र में काफी पैसा मिलता है और इस पेशे से अनेक लोगों से संबंध स्थापित होते हैं। बी.सी.आई. (बार कौंसिल ऑफ इंडिया) के अनुसार, प्रतिवर्ष भारतीय न्यायालयों में पंद्रह सौ नए वकील आते हैं।

विधि के क्षेत्र में वर्षो से परिवर्तन होता आ रहा है। कभी यह पेशा संभ्रांत वर्ग का गढ़ समझा जाता था, जो सिविल और फौजदारी मुकदमों पर ही केंद्रित था। लेकिन अब व्यवसाय के रूप में विधि के क्षेत्र में समाज का बहुत बड़ा हिस्सा शामिल हो चुका है और धीरे-धीरे यह विशेषज्ञता-युक्त क्षेत्र बनने की ओर अग्रसर हो रहा है।

वर्षो से विधि के क्षेत्र में विशेष परिवर्तन नहीं आया है; लेकिन सर्वाधिक संस्थानों में प्रवेश परीक्षा होती है, क्योंकि उम्मीदवारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, बंगलौर और सिंबोसिस, पुणे जैसे कुछ संस्थानों में स्कूली शिक्षा पूरी कर चुके विद्यार्थियों के लिए पांच वर्ष समेकित एल-एल.बी. पाठ्यक्रम चलाया जाता है।

दिल्ली के विधि संकाय जैसे अन्य संस्थान स्नातक स्तर के विद्यार्थियों को प्रवेश देते हैं। गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, मुंबई पहला संस्थान है, जहां देश में सबसे पहले विधि की पढ़ाई आरंभ की गई थी। इसके पूर्व विद्यार्थियों की सूची में मोतीलाल सेतलवाड - प्रथम एटॉर्नी जनरल तथा बी.आर. अंबेडकर जैसे नाम थे।

किसी अन्य लोकतंत्र के समान भारत में विधायी प्रणाली में शासन का तीसरा स्तंभ विधानमंडल या कार्यपालिका शामिल है तथा अन्य मजबूत स्तंभ मीडिया क्षेत्र है। न्यायपालिका संविधान की पवित्रता बनाए रखती है और नागरिकों के अधिकार सुरक्षित/सुनिश्चित करती है। इस प्रकार न्यायपालिका की लोकतांत्रिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका है।

हाल के कुछ वर्षो में न्यायपालिका के प्रति लोगों का विश्वास डगमगाता देखा गया है। विलंब और महंगी मुकदमेबाजी के कारण लोग न्यायालय से बाहर समझौता करने के लिए आधार तलाश करते हैं। स्वयं न्यायपालिका यह अनुभव करती है कि व्यवसाय के रूप में विधि क्षेत्र व्यवसायीकृत हो गया है। इसके अलावा अन्य महत्वपूर्ण अंतर यह आया है कि इस क्षेत्र में महिला वकीलों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।

विधि अब पुरुषों का ही गढ़ नहीं रहा है। अधिकाधिक महिलाएं इस क्षेत्र में प्रवेश कर रही हैं तथा पुरुषों के समान सक्षम पाई गई हैं। तथापि अधिकांश महिलाएं नियमित प्रैक्टिस की बजाय फर्मो या कॉरपोरेट क्षेत्र में विधि व्यवसाय अपनाती हैं। महिला वकील फौजदारी मुकदमों की बजाय तलाक के मामलों को प्राथमिकता देती हैं।

सबसे बड़ा कारक सूचना प्रौद्योगिकी तथा वर्ल्ड वाइड वेब का प्रभाव है, जिससे देश में वकालत के तरीके में विशिष्ट या उल्लेखनीय बदलाव आया है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी युग आ चुका है; क्योंकि लगभग सभी क्षेत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी का गहरा प्रभाव पड़ा है। किसी भी मामले का शोध कार्य अधिक सरल हो गया है।

आज डिजीटल दस्तावेज फौजीदारी मामलों में साक्ष्य समझे जाते हैं। सूचना प्रौद्योगिकी विधेयक पारित हो जाने से विधि के क्षेत्र में एक नया अध्याय खुल गया है। इंटरनेट पर कानूनी और गैर-कानूनी पक्ष के बीच विद्यमान सूक्ष्म अंतर रेखा के कारण जरूरी हो गया है कि साइबर विधि का अलग सैट तैयार किया जाए।

विशेष रूप से वर्ष 1995 के बाद उदारीकरण प्रक्रिया के कारण देश के वकीलों का कार्य-क्षेत्र बढ़ गया है। सन् 1995 में विश्व व्यापार संगठन की स्थापना तथा बाद में भारत द्वारा इसमें शामिल हो जाने से भारतीय विधि क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। डंपिंग, आई.पी.आर., आर्थिक सहायता से भारतीय विधि क्षेत्र को नया आयाम मिला है।

आज अनेक कानून अब प्रयोग में नहीं आते। वैश्वीकरण की वजह से विश्व सिमट गया है और इसीलिए जटिल तथा तथा अतिव्याप्त विधायी मुद्दों को पैदा करनेवाली समस्याएं भी पूरे विश्व से जुड़ गई हैं। इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय विधि प्र्याप्त महत्ता हासिल कर चुकी है। इनमें से किसी भी क्षेत्र में व्यक्ति विशेषज्ञता प्राप्त कर सकता है।

कॉरपोरेट क्षेत्र में-

कंपनी अधिनियम, साझेदारीवाली फर्मो, कॉरपोरेट के ड्राइंग विलेख आदि से संबंधित विधायी मुद्दे कॉरपोरेट विधि को सर्वोत्तम ढंग से परिभाषित करते हैं। सरल शब्दों में, कॉरपोरेट वकील योजनाकार तथा परामर्शदाता की भूमिका निभाता है। वह कॉरपोरेट तथ वाणिज्यिक पद्धति में सफलता के लिए अपेक्षित बौद्धिक मूल वृत्तियां विकसित करता है। उसके कार्य में मर्जर करारनामों तथा ऐसे दस्तावेजों का विश्लेषण शामिल है, जो सार्वजनिक या प्राइवेट ऋण या इक्वि टी शेयर जारी करने, बैंक वित्त पोषण करारनामे, लाइसेंस करारनामे या शेयर-धारकों के करारनामे से संबंधित है। कॉरपोरेट विधि में आपको विधायी अधिकारों, देयताओं तथा विशेषाधिकारों के बारे में कॉरपोरेट को सलाह देनी पड़ती है।

भारत में पृथक विषय के अध्ययन के रूप में कारपोरेट विधि का पिछले कुछ वर्षो से ही महत्व समझा जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियां तथा छोटी फर्मे वित्तीय मामलों एवं कंपनी के व्यवसाय को संभालने के लिए कॉरपोरेट वकील रखती हैं। कॉरपोरेट वकील का न्यूनतम प्रारंभिक वेतन काफी ऊंचा है।

फौजदारी के क्षेत्र में-

फौजदारी वकील सम्यक रूप से विधिक जटिलताओंवाले चोरी, हत्या, बलात्कार, अपहरण, कालाबाजारी, डकैती आदि मामलों को निपटाता है। फौजदारी वकील को भारतीय दंड संहिता की तमाम धाराओं तथा अधिनियमों से अवगत होना चाहिए। साथ ही फौजीदारी प्रक्रिया संहिता से भलीभांति परिचित होना चाहिए।

एडवोकेट के रूप में फौजीदारी वकील अपने मुवक्किल के समर्थन में दलीलें देकर आपराधिक परीक्षण में अपने पक्षों का प्रतिनिधित्व करते हैं। सलाहकारों के रूप में फौजदारी वकील अपने मुवक्किल को विधायी अधिकारों व देयताओं के बारे में परामर्श देते हैं तथा संबंधित मुद्दे पर सही और विशिष्ट उपाय का सुझाव देते हैं।

फौजदारी वकील बहुत अच्छा पैसा कमा सकता है। यह उसकी बाजार मांग (मार्केट वैल्यू) तथा मुवक्किल और परीक्षण (मुकदमे) की अवधि पर निर्भर करता है। निश्चित रूप से यह विधि का सर्वाधिक रोमांचक विशेषज्ञता-युक्त क्षेत्र है।

पर्यावरण के क्षेत्र में-

आज ग्लोबल परिदृश्य पर पर्यावरणीय मुद्दे अधिक हावी होते जा रहे हैं। भारतीय में पर्यावरण विधि अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है तथा यह अनिवार्य रूप से पर्यावरण पर प्रभाव डालनेवाली नीतियों से संबंधित है। आज अधिकांश कॉरपोरेट पर्यावरण विधि व्यावसायिक रखते है, ताकि पर्यावरणीय मुद्दों से जुड़े नियमों का उल्लंघन न हो। विश्व प्रकृति निधि का पर्यावरण विधि केंद्र है, जहां डिप्लोमा कराया जाता है। इस विधि क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त लोग गैर-सरकारी संगठनों, सरकारी एजेंसियों तथा उद्योगों के साथ कार्य कर सकते हैं।

उपभोक्ता संरक्षण के क्षेत्र में-

बाजार में सभी उपभोक्ताओं का संरक्षण होना जरूरी है। उपभोक्ता संरक्षण विधि बाजार में मिलनेवाली विफलताओं का संशोधन करने में सक्षम बनाती है। यह सुनिश्चित किया जाता है कि उपभोक्ता के पक्ष में न्याय हो। उपभोक्ता संरक्षण विधि ऐसी संविदाओं की शर्तो से संबंधित है, जिनके अंतर्गत उपभोक्ता को आपूर्तिकर्ता के द्वारा सामान और सेवाओं की आपूर्ति की जाती है। यदि संविदा का उल्लंघन होता है तो फर्म को उपभोक्ता के प्रति उचित क्षतिपूर्ति करनी होगी।

श्रम विधि के क्षेत्र में-

यह क्षेत्र कामगारों, अनेक संगठनों, कामकाजी स्थितियों, मजदूरों के अधिकारों और कर्तव्यों आदि से जुड़ा है। बहुधा श्रम विधि में विशेषज्ञता प्राप्त वकील को प्रबंधन एवं कर्मचारियों के बीच मुद्दों को सुलझाना होता है।

(करियर संबंधी और अधिक जानकारी के लिए देखिए ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली से प्रकाशित ए. गांगुली और एस. भूषण की पुस्तक "अपना कैरियर स्वयं चुनें"।)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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