विस्फोटों के बाद अहमदाबाद के मुसलमानों में 2002 जैसा भय नहीं
अहमदाबाद , 30 जुलाई (आईएएनएस)। अहमदाबाद में फरवरी 2002 में हुए दंगों के बाद अधिकांश मुस्लिम अपना घर छोड़ कर भाग गए थे, लेकिन शहर में शनिवार को हुए बम विस्फोटों के बाद नरोदा पाटिया और अन्य मुस्लिम बहुल इलाकों के निवासियों में उस समय जैसा भय नहीं है।
अहमदाबाद , 30 जुलाई (आईएएनएस)। अहमदाबाद में फरवरी 2002 में हुए दंगों के बाद अधिकांश मुस्लिम अपना घर छोड़ कर भाग गए थे, लेकिन शहर में शनिवार को हुए बम विस्फोटों के बाद नरोदा पाटिया और अन्य मुस्लिम बहुल इलाकों के निवासियों में उस समय जैसा भय नहीं है।
शहर के बाहरी इलाके में स्थिति नारोदा पाटिया के हुसैन नगर की निवासी नसीमा बानो ने कहा, "हम कहां और कब तक भागते रहेंगे? हम यहां अल्लाह की मर्जी से रह रहें हैं। यदि हमारे भाग्य में यहां मरना ही है तो हम मर जाएंगे।"
करीब 40 वर्षीया नसीमा एक कारखाने में काम करती है और उसकी बूढ़ी मां पिछले चार दशक से हिंदुओं के घरों में काम करती है।
वह और उसके पड़ोसी इंडियन मुजाहिदीन द्वारा 2002 की घटनाओं का बदला लेने के लिए बम विस्फोट करने की घटना के बाद से अधिक भयभीत नहीं हैं। गौरतलब है कि एक ई-मेल में इंडियन मुजाहिदीन ने कहा था वह 2002 की घटनाओं का बदला लेने के लिए विस्फोटों को अंजाम दे रहा है।
उसी इलाके के एक कबाड़ व्यवसायी नजीरभाई (50 वर्ष) ने कहा कि इस बार केंद्रीय रिजर्व पुलिस (सीआपीएफ) की भूमिका बदली हुई है। पिछली बार वे हत्यारों की मदद कर रहे थे, इस बार वे हमारी सुरक्षा कर रहे हैं।
नरोदा पाटिया के अन्य मुहल्लों नूरानी मस्जिद, सिटीजन नगर और हुसैन नगर के निवासियों ने भी ऐसी ही भावनाएं व्यक्त कीं।
न्यायालयों द्वारा 2002 के कुछ बहुचर्चित मामलों में दिए गए निर्णयों के बाद से लोगों में न्यायपालिका के प्रति विश्वास बढ़ा है।
नूरानी मस्जिद इलाके के निवासी साजिद हुसैन ने कहा कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मालूम है कि कानून अपना काम करेगा। इसलिए वे सांप्रदायिक सद्भाव की बात कर रहे हैं जबकि पिछली बार उन्होंेने ऐसा नहीं किया था।
उनका मानना है कि इस बार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की ्रप्रमुख सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी दबाव काम कर रहा है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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