नोट के बदले वोट प्रकरण के बावजूद लोकतंत्र में आस्था है इन प्रशिक्षुओं की
नई दिल्ली, 29 जुलाई (आईएएनएस)। नोट के बदले वोट प्रकरण ने भले ही हमें शर्मसार किया हो, लेकिन संसद के साथ जुड़कर संसदीय कार्य प्रणाली की बारीकियों से अवगत होने का सौभाग्य प्राप्त करने वाले पांच प्रशिक्षुओं की संसदीय लोकतंत्र में आस्था अभी भी अटूट बनी हुई है।
नई दिल्ली, 29 जुलाई (आईएएनएस)। नोट के बदले वोट प्रकरण ने भले ही हमें शर्मसार किया हो, लेकिन संसद के साथ जुड़कर संसदीय कार्य प्रणाली की बारीकियों से अवगत होने का सौभाग्य प्राप्त करने वाले पांच प्रशिक्षुओं की संसदीय लोकतंत्र में आस्था अभी भी अटूट बनी हुई है।
पिछले छह महीनों से संसदीय कार्यवाही एवं अन्य संसदीय गतिविधियों के गवाह रहे इन पांच प्रशिक्षुओं में तीन महिलाएं और दो पुरुष शामिल हैं। संसद से बतौर प्रशिक्षु जुड़ने वाला यह पहला समूह है। वे अपने अब तक के अनुभव को बेहद यादगार और रोचक बताते हैं। उनका मानना है कि इस अवसर ने उन्हें राष्ट्रीय कर्तव्यों और जिम्मेवारियों को लेकर अधिक जागरूक बनाया है।
इस समूह के एक सदस्य सहर महमूद, जो सेंट स्टीफंस कालेज के छात्र रहे हैं, ने आईएएनएस से बातचीत करते हुए कहा, "मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि वाद-विवाद या बहस को लेकर मेरी दिलचस्पी में इजाफा हुआ है। मुझसे मेरे दोस्त और संबंधी जब संसदीय बहस के नजारे को करीब से देखने के अनुभव के बारे में पूछते हैं तो मैं गौरवान्वित महसूस करता हूं।"
प्रशिक्षुओं में शामिल नितिनराज सिंह, जो एक राष्ट्रीय दैनिक में बतौर पत्रकार काम कर चुके हैं, ने इस संवाददाता से बातचीत करते हुए कहा, "निजी तौर पर मैं यह मानता हूं कि नोट के बदले वोट प्रकरण से लोकतंत्र शर्मसार हुआ है, पर इस व्यवस्था में मेरी आस्था अभी भी बरकरार है।" अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में शोध के छात्र और प्रशिक्षुओं में से एक 27 वर्षीय राहत हसन कहते हैं कि यह प्रकरण संसदीय प्रणाली के क्षरण का सबूत है, लेकिन मुझे संसदीय लोकतंत्र में पूरा भरोसा है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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