राहुल गांधी के आवास के पीछे झोपड़पट्टी से पुलिस की नींद हराम
नई दिल्ली, 28 जुलाई (आईएएनएस)। उच्च सुरक्षा वाले तुगलक रोड क्षेत्र में स्थित एक झोपड़पट्टी ने दिल्ली पुलिस की नींद हराम कर रखी है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का सरकारी निवास भी इसी क्षेत्र में है।
नई दिल्ली, 28 जुलाई (आईएएनएस)। उच्च सुरक्षा वाले तुगलक रोड क्षेत्र में स्थित एक झोपड़पट्टी ने दिल्ली पुलिस की नींद हराम कर रखी है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का सरकारी निवास भी इसी क्षेत्र में है।
पुलिस ने राहुल गांधी के निवास 12 तुगलक रोड के ठीक पीछे स्थित 300 झोपड़पट्टियों को जितना जल्दी हो सके खाली करवाने के लिए नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) को पत्र लिखा है। इन झोपड़पट्टियों में करीब 1500 लोग रहते हैं।
दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर यह सूचना दी है।
यह झोपड़पट्टी कई सांसदों और अति महत्वपूर्ण लोगों के निवास के ठीक पीछे है। इसके कारण सुरक्षा बलों को सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है।
एक अन्य अधिकारी ने बताया कि इन झोपड़पट्टियों के लोगों के दस्तावेज पूरी तरह दुरूस्त हैं इसलिए उनको हटाने के विषय में ज्यादा कुछ नहीं किया जा सकता है। लेकिन उनकी उपस्थिति सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है।
यहां रहने वाले अधिकांश लोग सांसदों के घरों में नौकरों के रूप में काम करते हैं।
एनडीएमसी के जनसंपर्क निदेशक आनंद तिवारी ने आईएएनएस से कहा कि हमने झोपड़पट्टी के लिए नए स्थान के लिए दिल्ली नगर निगम में पैसा जमा कर दिया है। जब वे हमको जमीन उपलब्ध करा देंगे झोपड़पट्टी हटा दी जाएगी।
झोपड़पट्टी वासियों के मुखिया चिद्दन लाल ने आईएएनएस को बताया, 'हमारे दस्तावेज स्पष्ट हैं। मैं इस स्थान पर 1978 से रह रहा हूं। आज यहां 1500 लोग रहते हैं।'
लाल ने कहा कि झोपड़पट्टी को किसी अन्य स्थान पर ले जाने का यहां के निवासी विरोध नहीं करेंगे। लेकिन हम किसी नजदीक के स्थान पर ही जाना चाहते हैं।
उन्होंेने कहा कि वे सुरक्षा एजेंसियों की चिंता को समझते हैं और दिल्ली पुलिस के लिए कोई समस्या खड़ी करना नहीं चाहते हैं। लाल ने कहा कि वे चाहते हैं कि अधिकारी उनको जसोला या नेब सराय जैसे नजदीकी स्थानों पर बसा दें। यदि ऐसा नहीं हुआ तो यहां रहने वाले अधिकांश लोग अपने रोजगार से हाथ धो बैठेंगे।
लाल ने कहा कि उन्होंने दिल्ली के उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री और नगर निगम को महीनों पहले इस बारे में पत्र लिखा था, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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