टनकपुर-पिथौरागढ़ मार्ग पर चार साल में 200 यात्री गंवा चुके जान
चम्पावत, 27 जुलाई (आईएएनएस)। सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण एक राष्ट्रीय राजमार्ग ऐसा भी है जिस पर यात्री भगवान भरोसे सफर करते हैं। विषम पर्वतीय भौगोलिक परिस्थितियों वाला टनकपुर-पिथौरागढ़ नामक (एन.एच. 125) मार्ग भूस्खलन के चलते आए दिन अवरुद्ध रहता है।
पिछले चार वर्षो में इस पर हुई सड़क दुर्घटनाओं से अब तक 200 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। मार्ग को बनाने वाली सरकारी संस्था सीमा सड़क संगठन (बी.आर.ओ) तथा ग्रिफ (जनरल इंजीनियरिंग फोर्स) के प्रति स्थानीय नागरिकों का गुस्सा चरम पर है।
सन 1961 में भारत-चीन युद्ध के बाद बी.आर.ओ. ने इस मार्ग का निर्माण किया था लेकिन अब मार्ग का अस्तित्व ही समाप्त होने की कगार पर है। सीमा क्षेत्र में तैनात सेना, अर्धसैनिक बलों सहित चम्पावत तथा पिथौरागढ़ आदि सीमांत जनपदों के लिए जीवन रेखा जैसे इस मार्ग पर जाम के दौरान सर्वाधिक परेशानी बच्चों, महिलाओं तथा मरीजों को होती है।
सीमा सड़क संगठन के चम्पावत स्थित मुख्यालय में तैनात एक उच्च अधिकारी ने विभागीय नियमों का हवाला देते हुए नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर बताया कि मार्ग में दूसरे चरण की स्वीकृति न मिलने के कारण इसकी दुर्दशा अब अपने चरम पर पहुंच गई है।
उन्होंने स्वीकार किया कि पिछले चार वर्षो में अब तक इस मार्ग पर 200 से अधिक लोग काल के ग्रास बन चुके हैं। गत सप्ताह ही राज्य परिवहन निगम की एक बस पर मलबा गिरने से 17 यात्रियों की मौत हो गई थी।
ग्राम प्रधान संघ के नेता रूपराम ने बताया कि बी.आर.ओ. द्वारा मार्ग चौड़ा करने हेतु बिना उचित अध्ययन के पहाड़ों में किये गये व्यापक विस्फोटों के चलते ही भूस्खलन हो रहा है।
सड़क के किनारे के पहाड़ों के हिल जाने तथा दूसरी तरफ की खाई के कट जाने के कारण अनेक स्थानों से तो सड़क का नामों निशान ही समाप्त हो गया है। मानसून के समक्ष बी.आर.ओ. का स्टाफ भी स्वयं को असहाय महसूस करता है।
उत्तराखण्ड में कुमाऊँ का द्वार कहलाने वाले इसी मार्ग द्वारा नेपाल के भारत से सटे सीमांत जिला मुख्यालयों- दारचुला, अछाम, सापें डडेलधुरा, अतरिया, डोटी, जगबुढ़ा, कंचनपुर, कैलाली इत्यादि क्षेत्र के लाखों नेपाली भी अपने देश में आने-जाने के लिए इसका व्यापक प्रयोग करते हैं।
मार्ग की खस्ताहाल हालत सुधारने को केन्द्रीय गृहमंत्री, रक्षामंत्री व राष्ट्रपति को भी ग्रामीण अनेक बार शिकायत कर चुके हैं।
चीन-तिब्बत अंतर्गत कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर लौटे प्रथम यात्री दल के सदस्य गुजरात निवासी अनिल स्याली ने बताया कि सीमा क्षेत्र के पार चीनी सेना के टैंकरों का व्यापक आवागमन होता है। जबकि हमारे सीमांत क्षेत्रों में सड़कों का नामो निशान ही नहीं है। चार बार कैलाश की यात्रा कर चुके श्री स्याली ने बताया कि पिछले दस वर्षो में चीन द्वारा अपने सीमांत क्षेत्रों में कराये गये विकास कार्यो के मुकाबले हमारे सीमांत क्षेत्रों में विकास नाममात्र भी नहीं हुआ है।
राज्य की महिला सशक्तीकरण मंत्री श्रीमती बीना महराना, धर्मस्थ व सांस्कृतिक तथा पर्यटन मंत्री प्रकाश पंत, पूर्ववर्ती सरकार में रहे केबिनेट मंत्री महेन्द्र सिंह माहरा अपने घर जाते समय इसी मार्ग का व्यापक प्रयोग करते हैं।
दिल्ली से सड़क मार्ग द्वारा विश्व के पर्यटन मानचित्र पर विख्यात श्यामलाताल झील, गुरूद्वारा श्री रीठा साहिब, स्वामी विवेकानंद द्वारा स्थापित मायावती आश्रम, गांधी जी के नारायण आश्रम,मुन्सयारी, देवीधुरा मन्दिर, गंगोलीहाट गुफा इत्यादि अनेक पर्यटक व धार्मिक स्थलों सहित धौलीगंगा परियोजना, चम्पावत तथा पिथौरागढ़ जिलों तक जाने के लिए देश-विदेश के यात्री इसी मार्ग का प्रयोग करते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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