भू-विज्ञान क्षेत्र में पाएं रोजगार
नई दिल्ली, 24 जुलाई (आईएएनएस)। भू-विज्ञान भूगोल विषय का ही एक अंग है, लेकिन अलग विषय के रूप में इसकी पूर्णत: उपेक्षा होती रही है। फिर भी धीरे-धीरे शैक्षणिक विधा के रूप में यह विषय लोकप्रिय होता जा रहा है।
भू-विज्ञान की अनेक ऐसी शाखाएं हैं, जिनमें व्यक्ति विशेषज्ञता हासिल कर सकता है। जैसे स्तर क्रम विज्ञान, संरचनात्मक भू-विज्ञान, जीवाश्म-विज्ञान तथा भू-संसाधन। इसके अलावा मानचित्र, अन्वेषण, पर्यावरण-विज्ञान, भूकंप-विज्ञान, सामुद्रिक भू-विज्ञान और हिमनद-विज्ञान में भी विशेषज्ञता हासिल की जाती है। भू-विज्ञान का प्रमुख हिस्सा संरचनात्मक भू-विज्ञान पर बल देता है।
इसमें संरचनाओं के विरचन के रूपों तथा यांत्रिकी का अध्ययन शामिल है। इस विषय का बुनियादी कार्य/लक्ष्य जटिल तराई के विरूपण के इतिहास की परतें खोलने में सहायता देना है। इस कार्य में क्षेत्र तथा प्रयोगशाला की तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इस दृष्टि से व्यक्ति को अवतलन, भ्रंशन तथा कोण संधि के निर्माण का अध्ययन करना पड़ता है।
जब किसी क्षेत्र में संरचना संबंधी गतिविधि होती है तो चट्टान टूटती है और हिमालय जैसी नई भू-विज्ञान संबंधी संरचनाएं उत्पन्न होती हैं। तनाव के कारण या तो चट्टान मुड़ जाती है या अवतल बन जाता है अथवा चट्टान बिखर जाती है और इससे भ्रंशन एवं कोण संधि निर्मित हो जाती है।
जीवाश्म विज्ञान में जीवाश्मों का अध्ययन किया जाता है। यह भू-विज्ञान का सर्वाधिक रोचक विषय है। अतीत की पुन: संरचना का कार्य असाधारण होता है। वह उस समय और भी अधिक असाधारण हो जाता है, जब केवल चट्टानें और मृदा ही उस युग की गवाह होती हैं, जिसकी मात्र कल्पना की जा सकती है। यदि आप अतीत की वनस्पति तथा पशु जीवन का अध्ययन करना चाहते हैं तो जीवाश्म ढूंढ़ना प्रमुख कार्य होता है। यदि जीवाश्म मिल जाता है तो यह जरूरी नहीं कि प्रासंगिक जानकारी मिलेगी ही।
यह मुश्किल कार्य है। चूंकि यह विषय रोचक है और साथ ही आकर्षक भी है, इसलिए इसमें व्यक्ति लगा रहता है। जीवाश्म विज्ञान के भीतर भी अनेक विधाएं हैं। जैसे-डायनासोर का अध्ययन, वनस्पति-जीवाश्म, सिफालोपॉड, ब्राचीपॉड, गैस्ट्रोपॉड, पेलीसिपॉड, जीवाश्मकरण, जीवाश्म का इस्तेमाल तथा वर्गीकरण।
भू-विज्ञान का अन्य महत्वपूर्ण विषय भू-संसाधन है। भूमि में ऐसे अनेक प्राकृतिक संसाधन हैं, जो मनुष्यों के लिए लाभदायक हैं। जैसे-पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस तथा कोयला। यह विषय ऐसे स्थानों का पता लगाने से संबंधित है जहां ये संसाधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं तथा परवर्ती अवस्था में इन संसाधनों का खनन कार्य किया जाता है। खनन कार्य आजकल आकर्षक व्यवसाय बन चुका है तथा अनेक लोग यह करियर अपना रहे हैं। इस क्षेत्र में काफी पैसा है, रचनात्मकता है, क्योंकि यह कार्य खोज से जुड़ा है।
भारत में अधिकांश महाविद्यालय अवर स्नातक स्तर पर भू-विज्ञान पाठ्यक्रम चलाते हैं, लेकिन स्नातकोत्तर स्तर पर विशेष पाठ्यक्रम में शामिल होना भी जरूरी होता है। विदेशों में अध्ययन की काफी संभावनाएं हैं, क्योंकि अनेक विदेशी विश्वविद्यालयों में भू-विज्ञान तथा इससे जुड़े विषयों, विशेषत: स्नातकोत्तर स्तर पर ये पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं।
शुरू-शुरू में भू-विज्ञान कठिन होता है, लेकिन रुचि जाग्रत होने पर विषय आसान लगने लगता है। यह बहुआयामी विषय है, इसलिए इसमें रुचि बनी रहती है। भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण तथा केंद्रीय भू-जल बोर्ड संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षाओं के माध्यम से भू-वैज्ञानिकों की भर्ती करते हैं। चुने गए उम्मीदवारों को पहले दो वर्ष की अवधि के लिए परिवीक्षाधीन रखा जाता है।
जीएसआई प्रशिक्षण के माध्यम से नए सिरे से उम्मीदवारों की भर्ती की जाती है और देश के किसी भी भाग में उनकी तैनाती से पूर्व आंतरिक स्तर पर परीक्षा ली जाती है। भू-विज्ञान/अनुप्रयुक्त भू-विज्ञान/समुद्री भू-विज्ञान/खनिज अन्वेषण/हाइड्रो भू-विज्ञान में स्नातकोत्तर या भारतीय खान स्कूल, धनबाद में अनुप्रयुक्त भू-विज्ञान के एसोसिएट इस परीक्षा में बैठ सकते हैं। इनकी आयु सीमा इक्कीस से तीस वर्ष है। इस परीक्षा में पांच प्रश्न-पत्र होते हैं। एक पेपर अंग्रेजी, दो पेपर हाइड्रो भू-विज्ञान तथा दो पेपर भू-विज्ञान के होते हैं।
भू-वैज्ञानिक परामर्शदाता के रूप में प्राइवेट क्षेत्र में कार्य करते हैं या अन्वेषण और सर्वेक्षण के क्षेत्र में कार्य करते हैं। अनेक सरकारी संगठन सर्वेक्षण या अन्वेषण संबंधी कार्य के लिए भू-वज्ञानिकों की नियुक्ति करते हैं। भू-वैज्ञानिकों की आज बहुत मांग है। ओएनजीसी, कोल इंडिया, हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड, मिनरल एक्सलोरेशन लिमिटेड आदि जैसी कंपनियां भी इनकी भर्ती करती हैं।
'वाडिया इंस्टीच्यूट ऑफ हिमालयन ज्योलॉजी', 'नेशनल ज्योफिजिकल रिसर्च इंस्टीच्यूट', 'सेंटर फॉर अर्थ स्टडीज', 'नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी' और 'इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटीरियोलॉजिकल' जैसे संस्थान भू-वैज्ञानिकों को काम पर रखते हैं तथा लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के माध्यम से उनका चयन किया जाता है। प्रमुख अनुसंधान नियुक्तियों के लिए डाक्ट्रेट की उपाधि जरूरी है।
मध्य केंद्र स्तर पर सरकारी सेवा में आने के बाद मूल वैज्ञानिक विषयों की पृष्ठभूमि वाले लोग आसानी से अधिकारी बन सकते हैं। इन पदों पर आकर्षक वेतन मिलता है। राज्य सरकारें खनन संबंधी सर्वेक्षण कराती हैं। इस क्षेत्र में भी रोजगार मिल सकता है।
ओएनजीसी जैसे तेल उद्योग तथा परमाणु खनिज डिवीजन एवं खनिज अन्वेषण कंपनियां ऐसी पृष्ठभूमि वाले लोगों की तलाश में रहती हैं और इन्हें प्रशिक्षण देती हैं। शैक्षणिक अभिविन्यास वाले लोग पी-एचडी स्तर तक शोध कार्य कर सकते हैं। इस प्रकार भू-विज्ञान में अनेक आकर्षक करियर संबंधी विकल्प मौजूद हैं।
(करियर संबंधी और अधिक जानकारी के लिए देखिए ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली से प्रकाशित ए. गांगुली और एस. भूषण की पुस्तक "अपना कैरियर स्वयं चुनें"।)
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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