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बसपा को चमत्कारिक नतीजे का इंतजार!

By Staff
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लखनऊ, 14 जुलाई (आईएएनएस)। बसपा और वाम दलों के बीच पनपी नजदीकी दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने की बसपा सुप्रीमो मायावती की चाहत के लिए निर्णायक सिद्घ हो सकती है।

इस नए घटनाक्रम से बसपा के लोग खुश हैं और वे इसे मायावती की राजनीतिक शैली और रणनीति में आया ऐसा बदलाव बता रहे हैं जो आगे चलकर चमत्कारिक नतीजे दे सकता है। मायावती ने यह मान लिया है कि दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए उनका 'एकला चलो' के बजाय कतिपय दलों (मुख्यत: वाम दलों) के साथ मेल जोल जरूरी है।

मायावती सरकार के एक काबीना मंत्री ने आईएएनएस से कहा कि पहली बार मायावती को राष्ट्रीय राजनीति में एक ऐसा पैरोकार मिला है, जिसने गठबंधन राजनीति के मौजूदा दौर में कभी खुद सत्ता न लेकर हमेशा 'किंग मेकर' की भूमिका निभायी है और विश्वनाथ प्रताप सिंह, एच़ डी़ देवेगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल और डा़ मनमोहन सिंह की सरकारें इसका उदाहरण है।

उपरोक्त मंत्री की माने तो अब भाजपा और कांग्रेस से इतर तीसरे मार्चे में बसपा की हैसियत वैसी हो जाएगी जैसी कभी सपा की होती थी। प्रयास हो रहे हैं और जल्दी ही कोई ऐसा मोर्चा आकार ले सकता है जिसमें कुछ वे दल भी शामिल हों जो संयुक्त प्रगतिशील राष्ट्रीय गठबंधन में हैं और मुलायम सिंह यादव के कांग्रेस के समर्थन में चले जाने से ठगे गए महसूस कर रहे हैं।

प्रदेश सरकार के एक दूसरे काबीना मंत्री ने कहा कि वाम दल, बसपा और कुछ अन्य दल मिलकर लोकसभा में 100-125 सीटें आसानी से जीत सकते हैं और तब अगर सांप्रदायिक ताकतों (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को सत्ता में आने से रोकने के नाम पर वाम दलों ने बहन जी को प्रधानमंत्री बनाने की पेशकश की तो कांग्रेस अथवा अन्य भाजपा विरोधी दलों के लिए इसे ठुकरा पाना आसान नहीं होगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षक भी मानते हैं कि जिन हालात में कांग्रेस और वामदलों के बीच राजनीतिक हनीमून समाप्त हुआ है और वामदलों को अपना 'नेचुरल एलाई' बताने वाले सपा ने पाला बदल किया है उसको देखते हुए आगे कभी नौबत आने पर कांग्रेस पर इस बात का दबाव रहेगा कि तब धर्मनिरपेक्षता के नाम पर वह वैसे ही समर्थन दे जैसे उसने देवेगौड़ा और गुजराल की सरकारों को दिया था।

बसपा के लोग एक और तर्क पेश करते हैं कि जो दिलचस्पी से खाली नहीं है। इनका कहना है कि गठबंधन का गणित अगर मायावती के प्रधानमंत्री बनने के पक्ष में आने लगा तो देश के पहले दलित प्रधानमंत्री बनने की राह में खुद को रोड़ा साबित करने के लिए कांग्रेस सहित अन्य धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों का आगे आना और भी मुश्किल साबित होगा।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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