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प्राकृतिक दृश्य वास्तुशिल्प में तलाशें रोजगार

By Staff
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नई दिल्ली, 14 जुलाई (आईएएनएस)। आम धारणा के विपरीत प्राकृतिक दृश्य तथा वास्तुशिल्प फूल, पेड़-पौधे तथा झाड़ियां लगाना और पेड़-पौधों की काट-छांट मात्र नहीं है। सार रूप में, प्राकृतिक चित्रण आउटडोर डिजाइनिंग है। पुन: घर की बाहरी दीवारें, पगडंडी, गेट, प्रकाश व्यवस्था या गैराज तक सभी इसमें शामिल हैं।

जिस प्रकार पारंपरिक वास्तुकार द्वारा रूपरेखा के डिजाइन तैयार किए जाते हैं और इंटीरियर डिजाइनर आंतरिक सज्जा से संबंधित कार्य करता है उसी प्रकार प्राकृतिक दृश्यों का वास्तुकार बाह्य सज्जा का डिजाइन तैयार करता है। इसीलिए इस कार्य में विज्ञान और कला का इस्तेमाल करके प्राकृतिक कच्चे माल को कलात्मक कृति में बदल दिया जाता है।

प्राकृतिक चित्रण के वास्तुकार अधिकांशत: परियोजना के सिविल इंजीनियर, वास्तुकार एवं शहरी प्लानर जैसे बिल्डिंग व्यावसायिक के साथ कार्य करता है। कल्पना करते समय तथा दिए गए क्षेत्र की डिजाइनिंग के समय प्राकृतिक दृश्यों के वास्तुकारों को क्षेत्र में मौजूद जलवायु तथा वनस्पति और प्राणिजगत का भी ध्यान रखना होगा।

गुजरात के समुद्र के निकट क्षेत्रों में उगनेवाले पेड़ हर जगह नहीं उग सकते। यहां जीव-वैज्ञानिकों, पारिविदों, बागवानी विशेषज्ञों, हाइड्रोलॉजिस्ट, भू-वैज्ञानिकों तथा अन्य विशेषज्ञों की भी सेवाएं ली जाती हैं। इस प्रकार इस क्षेत्र में कार्य करने के लिए इंजीनियरिंग, मृदा-गतिक तथा बागवानी में रुचि एवं जानकारी होना जरूरी है।

इस बारे में सुखद समाचार यह है कि लैंडस्केप (प्राकृतिक दृश्य) डिजाइनर बनने के लिए डिग्री की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इस क्षेत्र में सफल होने के लिए जरूरी है कि आप अपने काम में दक्ष हों। डिजाइन की मूलभूत बातें, संतुलन लोने की अच्छी समझ और सौंदर्य-बोध होना जरूरी है। प्रकृति के साथ गहरा लगाव और प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर इस्तेमाल करने की योग्यता होनी चाहए।

यदि आप अपने आस-पास के माहौल के प्रति सजग नहीं है तो आप अच्छे लैंडस्केप डिजाइनर नहीं हो सकते। तथापि डिग्री या डिप्लोमा को प्राथमिकता दी जाती है। लैंडस्केप वास्तुकला में स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के लिए जरूरी है कि आपके पास वास्तुशिल्प या बागवानी में डिग्री हो।

इस पाठ्यक्रम में प्राकृतिक दृश्यों की अच्छी समझ, प्राकृतिक चित्रण का ज्ञान, विवरण तथा व्याख्या, पर्यावरण का सार, विद्यमान परंपरा और संस्कृति शामिल हैं। पर्यावरण के प्रति जागरूकता, छोटे पैमाने पर स्थल, आयोजना एवं पारितंत्र के सिद्धांत, मुख्यत: अमूर्त डिजाइन एवं अनिवार्य ग्राफिक तकनीकें भी सिखाई जाती है।

बाहर के देशों में भू-दृश्य डिजाइनर बहुत बड़ी टीम का हिस्सा होते हैं। ये नगर-आयोजकों, शहरी डिजाइनर, सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियर, सिविल इंजीनियर तथा अन्य तकनीशियनों के साथ मिलकर कार्य करते हैं। भारत में यह व्यवसाय अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है। अधिकांशत: प्राइवेट परियोजनाओं तक ही यह कार्य सीमित है। हालांकि नौवें दशक के अंत में इस क्षेत्र में काफी अंतर आया है।

अधिकाधिक प्लानरों का भू-दृश्य/ प्राकृतिक दृश्यों के लिए स्थान बनता जा रहा है। वस्तुत: बिल्डिंग के काम्प्लेक्स में कुल क्षेत्र का 60 प्रतिशत हिस्सा प्राकृतिक दृश्यों की डिजाइनिंग के लिए छोड़ा जाता है। निश्चित रूप में लैंडस्केप वास्तुकार की संभावनाएं विकसित हुई हैं। संभवत: पर्यावरण के प्रति लोगों में आई जागरूकता के कारण इस क्षेत्र को बढ़ावा मिल रहा है। हालांकि अपने अपार्टमेंट के पास व्यक्ति जंगल नहीं उगा सकता; लेकिन उसके अपार्टमेंट के पास एक खूबसूरत बगीचा तो हो ही सकता है।

इस क्षेत्र में प्रारंभ में सहायक के रूप में वास्तुकार के साथ कार्य किया जाता है। सभी संबंधित डिग्रियों तथा ड्राइंग के साथ पोर्टफोलियों तैयार करना निर्णायक घड़ी होती है। इसका कार्यक्षेत्र व्यापक है तथा अच्छा पारिश्रमिक भी मिलता है। सर्वोत्तम विकल्प यही है कि पर्याप्त अनुभव लेने के बाद परामर्श सेवा संगठन प्रारंभ करें या स्वतंत्र रूप से कार्य करें।

(करियर संबंधी और अधिक जानकारी के लिए देखिए ग्रंथ अकादमी, नई दिल्ली से प्रकाशित ए. गांगुली और एस. भूषण की पुस्तक "अपना कैरियर स्वयं चुने"।)

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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