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नई तकनीक से होगी 'आर्सेनिक' प्रभावित क्षेत्रों की पहचान

By Staff
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वाशिंगटन, 14 जुलाई (आईएएनएस)। ऐसे स्थानों की पहचान के लिए एक नई तकनीक विकसित की गई है, जहां भू-जल में आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है।

यह तकनीक पुरानी तकनीकों की अपेक्षा सस्ती भी है। इससे पहले इस काम के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया काफी जटिल और खर्चीली थी।

पर्यावरण वैज्ञानिक माइकल बर्ग और भूवैज्ञानिक लेनी विंकल के नेतृत्व में की गई इस खोज से दक्षिण और दक्षिणी-पूर्व एशिया के लाखों लोगों को लाभ पहुंचने की उम्मीद है जो इस जहर का रोज सेवन करते हैं।

दुनिया भर के लगभग 10 करोड़ लोग रोज जल में पाए जाने वाले इस प्रदूषक तत्व के संपर्क में आते हैं। जल में घुलनशील यह विषाक्त पदार्थ स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह होता है। इसके लगातार इस्तेमाल से कई तरह के त्वचा रोग, गुर्दा रोग और कैंसर भी हो सकता है।

इस अध्ययन के निष्कर्ष जर्नल 'नेचर जियोसाइंस' के ताजा अंक में प्रकाशित हुए हैं।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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