वामपंथियों का समर्थन वापसी संकेत

By Staff
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Manmohan Singh
कोलकाता/नई दिल्ली, 6 जुलाई: भारत-अमेरिकी परमाणु करार मुद्दे पर वामपंथी दलों ने केंद्र सरकार को जल्दी ही समर्थन वापस लेने की चेतावनी दी है। उधर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने कहा है कि प्रधानमंत्री को सदन के पटल पर बहुमत साबित करना चाहिए क्योंकि सरकार अल्पमत में आ गई है।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने शनिवार को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार को चेतावनी दी कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 'ग्रुप-8' की बैठक से लौटने के पहले भी वामपंथी दल समर्थन वापस ले सकते हैं। प्रमुख वामपंथी नेताओं ने कोलकाता में वरिष्ठ मार्क्‍सवादी नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु समेत अन्य वरिष्ठ कामरेडों के साथ एक बैठक कर इस मुद्दे पर चर्चा की।

भाकपा महासचिव ए. बी. वर्धन ने कहा कि समर्थन वापसी की सूरत में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को संप्रग सरकार से लोकसभा में विश्वास मत हासिल करने को कहना चाहिए। वामदलों द्वारा सरकार को सात जुलाई तक का अल्टीमेटम दिए जाने के बारे में कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी की कड़ी टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर वर्धन ने बताया, "वे यदि आगे बढ़ने को आतुर ही हैं तो हम प्रधानमंत्री की विदेश से वापसी के पहले भी समर्थन वापस ले सकते हैं।"

उन्होंने कहा कि सरकार उनके अल्टीमेटम को नजरअंदाज करती है तो आगामी आठ या नौ जुलाई को वामदलों की बैठक में अगले कदम के बारे में निर्णय लिया जाएगा। वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी द्वारा समर्थन वापसी की सूरत में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लोकसभा में बहुमत साबित करने की मांग किए जाने के बारे में पूछे जाने पर वर्धन ने कहा, "औपचारिक रूप से समर्थन वापस लेने की सूरत में राष्ट्रपति को सरकार से बहुमत साबित करने को कहना चाहिए।"

इससे पहले भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार लालकृष्ण आडवाणी ने कहा, "परमाणु करार के मुद्दे पर वाम दलों की समर्थन वापसी की धमकी के मद्देनजर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार अल्पमत में आ गई है। सरकार का सत्ता में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। अब देश में नए सिरे से चुनाव कराए जाने चाहिए।"

आडवाणी ने कहा, "यद्यपि, सामान्य तौर पर अगस्त में संसद की बैठक बुलाई जाती है, लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए हमारी पार्टी तत्काल संसद की बैठक बुलाने और मनमोहन सरकार से लोकसभा में बहुमत साबित करने की मांग करती है।"

आडवाणी ने परमाणु करार पर पार्टी की राय स्पष्ट करते हुए कहा कि वे अमेरिका के साथ एक रणनीतिक संबंध चाहते हैं लेकिन वह संबंध बराबरी के होने चाहिए। यदि भाजपा सत्ता में आएगी तो वह करार पर नए सिरे से बातचीत करेगी। उधर, समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा कांग्रेस से हाथ मिलाने के खुले संकेतों के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्रीय प्रगतिशील गठबंधन (यूएनपीए) एक और टूट की कगार पर पहुंच गया है।

सपा ने आज फिर से स्पष्ट संकेत दिए कि परमाणु करार के मुद्दे पर वामदल यदि केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेते हैं और सरकार को बहुमत साबित करने की नौबत आती है तो वह सरकार के पक्ष में मतदान करेगी। ज्ञात हो कि लोकसभा में सपा के 39 सदस्य हैं।

करार पर आगे बढ़ने को लेकर प्रतिबद्ध दिख रही सरकार को सपा का समर्थन मिलना तय माना जा रहा है। सपा ने सरकार को समर्थन देने के स्पष्ट संकेत दिए हैं। सपा महासचिव अमर सिंह ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा, "उन्हें सांप्रदायिक और धर्मनिरपेक्ष पार्टियों में से किसी एक को चुनना था।"

उन्होंने लोकसभा में विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी को अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश से भी खतरनाक बताया। उन्होंने कहा कि संप्रदायवाद से कहीं ज्यादा खतरनाक सांप्रदायिकता है। सपा के इस रुख से यूएनपीए का टूटना तय हो गया है। पार्टी के इस रुख की आलोचना करते हुए इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के मुखिया ओमप्रकाश चौटाला ने कहा, "कांग्रेस ने सपा को पहले भी अपमानित किया है और वह तीसरी बार अपमानित होना चाहती हैं।"

असम गण परिषद (अगप) के अध्यक्ष वृंदावन गोस्वामी ने कहा, "कोई भी निर्णय लेने से पहले सपा को यूएनपीए के सहयोगियों से बात कर लेनी चाहिए थी। हम सामूहिक रूप से यह फैसला करेंगे कि सपा हमारे गठबंधन का हिस्सा रहेगा या नहीं।"

तेलुगुदेशम पार्टी (टीडीपी) ने हालांकि यूएनपीए के बिखरने की संभावनाओं को खारिज कर दिया। पार्टी के वरिष्ठ सांसद आर. चंद्रशेखर रेड्डी ने हैदराबाद में आईएएनएस को बताया, "एक-दो सहयोगी हमारा साथ छोड़ सकते हैं लेकिन हमारे लिए विश्वसनीयता अहम है। हम शुरू से ही करार का विरोध करते रहे हैं और आज भी हम अपने रुख पर कायम हैं। यह करार देशहित में नहीं है।"

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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