क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

पंडागीरी से ऊब रहे हैं काशी के पंडे

By Staff
Google Oneindia News

वााराणसी, 1 जुलाई (आईएएनएस)। माना जाता है कि आधुनिकता का रंग परंपरा को नकारने के बाद ही गाढ़ा होता है। लेकिन शायद ही किसी को पता हो कि इस आधुनिकता के गाढ़े रंग की लालिमा के पीछे उन परंपरावादी लोगों की कई पीढ़ियों के परंपरागत रोजगारों का खून भी हो जाता है, जिसके सहारे वे अपने परिवार का पेट पालते रहे होते हैं। इसी तरह के एक परंपरागत रोजगार पर आजकल संकट के बादल मंडराने लगे हैं, जिससे एक या दो नहीं कई-कई पीढ़ियां पलती आ रहीं हैं।

बात तीर्थ स्थानों में रहने वाले उन पंडों की हो रही है, जिनके जीविका का साधन केवल पुरोहितगिरी ही होती है। एक समय अकेले वाराणसी में यहां के 84 घाटों पर कर्मकांड कराने वाले पंडों की संख्या दो हजार से अधिक थी, लेकिन आज यह घटकर 100-150 के लगभग रह गई है। यजमानों की कर्मकांडों के प्रति घट रही आस्था से वाराणसी का पूरा पंडा समाज न केवल चिंतित है, बल्कि वह अपनी अगली पीढ़ी को इस धंधे से दूर भी रखना चाहता है क्योंकि पंडागीरी अब फायदे का धंधा नहीं रहा।

वाराणसी के प्रयागघाट के राम भरत पांडेय अपनी पांचवीं पीढ़ी के इकलौते वारिस हैं, जिंहोने कर्मकांड और पुरोहिती को अपने जीविकोपार्जन का साधन बना रखा है। पांडेय जी का आठ सदस्यों वाला पूरा परिवार इसी पुरोहिती और कर्मकांड के सहारे किसी तरह से पल रहा है। दो कमरे के छोटे से मकान में एक चारपाई, दो कुर्सियां और जरूरत के कुछ छोटे मोटे सामान के सहारे रहने वाले पांडे जी के दिन की शुरुआत मुहल्ले के मंदिरों में पूजा करते हुए होती है।

भगवान को भोग लगाने के बाद जो प्रसाद मिलता है वही प्रसाद पूरे परिवार का नाश्ता होता है। रामभरत पांडेय बताते हैं कि माता-पिता ने मुझे विरासत में यही कर्मकांड व ज्योतिष ही दिए थे, जिसे मैं तो किसी तरह निभा रहा हूं, लेकिन हमारे बच्चे यह काम नहीं करेंगे । क्योंकि अब पुरोहिगिरी में न तो इज्जत रही और न ही आमदनी। उनकी पत्नी शशिकला पांडेय कहती हैं कि मंहगाई के इस जमाने में पंडागीरी से घर का खर्च नहीं चल पाता है इसलिए हम अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाकर अच्छी नौकरी करवाना चाहते हैं।

पंडागीरी से तौबा करने वाले अकेले रामभरत पांडेय ही नहीं हैं बल्कि वाराणसी के घाटों पर रहने वाले सभी पंडों का भी यही हाल है। लगभग 40 साल के हो चुके जगदीश मंहराज ने तो इस अपमानित हो चुकी पंडागीरी की काली छाया से अपने बच्चों को बचाने के लिए उहें बचपन से ही दूर रखने का फैसला पहले से ही कर लिया था। वे कहते हैं कि हमने जितनी जलालत इस धंधे में सहा है उतना हमारे बच्चे नही सह पायेंगे ।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

**

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X