झारखंड के एक खेत में ही विद्यालय चलाते हैं 'पितामह'
पलामू, 29 जून (आईएएनएस)। उम्र के 85वें वर्ष में भी कामता सिंह के हौसले पस्त नहीं हुए हैं। वह आज भी पूरी उर्जा के साथ शिक्षा का अलख जगाने में जुटे हैं।
झारखंड के पलामू जिला में पाटन प्रखंड के कजरी गांव निवासी सिंह 31 दिसंबर, 1979 में सरकारी सेवा से सेवानिवृत्त हुए, लेकिन लोगों को शिक्षित करने की भूख उनमें कम नहीं हुई। शिक्षा के प्रति उनकी निष्ठा देखकर लोगों ने उन्हें 'पितामह' का नाम दिया है।
ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े कामता सिंह आज भी अपने पालतू जानवरों को लेकर चराने निकलते हैं, लेकिन इसी दौरान वे शिक्षा का अलख भी जगाते हैं। जब वे अपने गांव में जानवरों को लेकर निकलते हैं, तो गांव के बच्चे उनके पीछे दौड़ पड़ते हैं। इसका कारण यह है कि वे जानवरों को चराते वक्त ही बच्चों को पढ़ाते हैं। बच्चे भी खेत को ही अपना विद्यालय मान पढ़ने में ध्यानमग्न रहते हैं।
एक ग्रामीण मानदेव सिंह कहते हैं कि पितामह ने बच्चों के जेहन में पढ़ाई के प्रति रुचि जगा दी है। उधर, मजदूर दशरथ का कहना है कि आज कामता बाबू के कारण ही हमारे बच्चे पढ़ना जान गए। 1 जनवरी, 1922 को जन्मे कामता सिंह की नियुक्ति 1945 में स्वास्थ्य निरीक्षक के पद पर हुई थी, लेकिन प्रारंभ से ही उन्हें शिक्षा के प्रति लगाव था। यही कारण था कि उस नौकरी को छोड़कर 31 दिसंबर, 1946 को एक सरकारी विद्यालय में शिक्षक की नौकरी करने लगे।
कामता सिंह वर्तमान में शिक्षा की स्थिति पर चिंतित हैं। उनका कहना है कि अब पहले जैसा माहौल नहीं है। अब न तो शिक्षक निष्ठा के साथ पढ़ाते हैं और न ही विद्यार्थियों के मन में शिक्षक के प्रति श्रद्धा का भाव रहा। इसका कारण वह शिक्षा का व्यावसायीकरण मानते हैं। उनका कहना है कि पहले गरीब के बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर लेते थे, लेकिन अब के दौर में यह संभव नहीं। अब शिक्षा महंगी हो गई है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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