बुलंद हौसलों से मिली मंजिल
जयपुर, 27 जून (आईएएनएस)। सिरोही जिले में 'राष्ट्रीय गारंटी योजना' आमजन को आर्थिक सुरक्षा देने के साथ-साथ राहत भी पहुंचा रहा है। उपलागढ़ से आबूरोड को जोड़ने के लिए बनाई गई ग्रेवल सड़क इसका ताजा उदाहरण है। इस सड़क के बनने से आबूरोड से उपलागढ़ के बीच की दूरी में 16 किलोमीटर की कमी आई है और ग्रामीणों को कई परेशानियों से निजात मिल गया है।
नरेगा के तहत पंचायत समिति आबूरोड की ग्राम पंचायत उपलागढ़ में उपलागढ़ को आबूरोड से उपलागढ़ दो ग्रेवल सड़कों और रपटों का निर्माण कार्य किया गया है। इसी का नतीजा है कि जहां पहले आबूरोड से उपलागढ़ जाने के लिए 28 किलोमीटर का फासला तय करना पड़ता था, आज यह दूरी मात्र 12 किलोमीटर रह गई है। अब इस नए मार्ग द्वारा उपलागढ़ से आबूरोड जाने में महज 25 मिनट का समय लगता है, जबकि पहले करीब एक घंटा खर्च करना पड़ता था।
पहाड़ियों, चट्टानों और जंगली झाड़ियों को काटकर इस असंॅभव से दिखने वाले कार्य को संभव बनाया है नरेगा के तहत कार्य कर रहे उपलागढ़ गांव के श्रमिकों ने। वास्तव में इस कामयाबी का श्रेय राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और आदिवासी क्षेत्र के कर्मठ श्रमिकों को जाता है, जिन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और सूझ-बूझ से इस सड़क का निर्माण कर दिखाया है।
कई दुश्वारियां भी इस कार्य के दौरान सामने आईं। खुजली वाली केत की फली की झाड़ियों और जंगली पौधों को हटाने के दौरान श्रमिकों के शरीर में खुजली होने लगी थी। इसके उचार के लिए श्रमिकों को नरेगा के तहत उपलब्ध दवाईयां दी गईं। इसी प्रकार पहाड़ी क्षेत्र होने से मार्ग में कई बड़ी-बड़ी चट्टानों और पत्थरों का अवरोध था। इन्हें तोड़ने के लिए श्रमिकों ने अपनी सूझ-बूझ का परिचय दिया। पहले पत्थरों के नीचे आग जलाई गई। जब चट्टानें व पत्थर गरम होकर लाल हो गईं तो उन पर पानी डाला गया, जिससे पत्थर चटक गए। इन चटके पत्थरों को हथौड़ों से तोड़कर रास्ता तैयार किया गया।
पहले पुराने कार्य पर बरसात के मौसम में पानी का बहाव शुरू हो जाने से मार्ग अवरूद्ध हो जाता था और आवागमन बाधित होता था। लिहाजा बीमार व्यक्ति को कंधों पर अथवा खाट पर डालकर पैदल रास्ता पार करना पड़ता था, जिसमें खासा जोखिम रहता था। अब निर्मित नए मार्ग बारिश के दिनों में भी खुले रहते हैं। अब बीमार व्यक्ति को दुपहिया वाहन अथवा टैक्सी के माध्यम से कम समय में आबूरोड चिकित्सालय पहुंचाया जा सकता है और उसकी जान बचाई जा सकती है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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