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आप्रवासन पर यूरोप में बहस तेज

By Staff
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सिगफ्रीड मोर्तकोवित्ज और बेन निम्मो

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पेरिस/ब्रसेल्स, 27 जून(आईएएनएस)। एक हजार वर्ष से भी पहले फ्रांसीसी प्रधानमंत्री चार्ल्स मार्टेल ने जब फ्रांस को मुस्लिम हमले से बचाया था, तो उन्हें इतिहास में महान राष्ट्रभक्त और रक्षक की संज्ञा दी गई थी। अब आप्रवासन को जनसांख्यिकीय हमला मानने वाले यूरोपीय नेता और लोग इस कहानी से प्रेरणा ले रहे हैं। वे आप्रवासन के प्रवाह से खफा हैं।

यूरोप के प्रति आप्रवासन प्रवाह को लेकर स्थानीय लोगों में यह डर समाता जा रहा है कि वे अपने ही घर में अल्पसंख्यक हो जाएंगे और उनके लिए रोजगार के अवसर कम हो जाएंगे। खासकर, फ्रांस सरकार का रवैया इसे लेकर अधिक सख्त होता जा रहा है।

फ्रांस एक जुलाई को यूरोपीय संघ की अध्यक्षता संभालेगा। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी का रुख आव्रजन पर कड़ा रहा है। आप्रवासन पर तैयार एक यूरोपीय मसौदे में कहा गया है, "यह जरूरी है कि आप्रवासन बाहरी लोगों को खपाने की यूरोप की क्षमता के अनुपात में हो। आप्रवासन का प्रवाह श्रम बाजार के दायरे, स्कूली शिक्षा व आवासीय सुविधाओं की उपलब्धता आदि के आधार पर हो।"

इस प्रस्ताव को सरकोजी के दिमाग की उपज माना जा रहा है। हंगरी मूल के दंपती के पुत्र सरकोजी आप्रवासियों में भी मालाईदार तबके को ही प्राथमिकता दिए जाने के पैरोकार रहे हैं। वे आप्रवासन के दायरे को सीमित किए जाने के पक्ष में रहे हैं। इस प्रस्ताव को पूरे यूरोप में व्यापक समर्थन मिला है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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