जयदीप सरीन
धरमकोट (हिमाचल प्रदेश), 25 जून (आईएएनएस)। क्या आपका मन भी दुनिया की छत कहे जाने वाले ल्हासा और यहूदियों की ख्वाब नगरी तेल अवीव की सैर के लिए मचलता है? अगर ऐसा है तो हिमाचल के दो पड़ोसी इलाकों की सैर कर आप अपने इस ख्वाब को पूरा कर सकते हैं।
पर्वतों की धरती हिमाचल प्रदेश में धौलाधर पर्वत की गोद में इन दोनों शहरों की छवियों से लैस दो इलाके हैं, जिन्हें सैलानी 'लघु ल्हासा' और 'लघु तेल अवीव' कहते हैं। इनके बीच का सफर महज 50 रुपये में पूरा किया जा सकता है। तिपहिया में सवार होकर आकाश और जमीं तक फैले हैरतअंगेज नजारों को निहारते हुए आप एक इलाके से दूसरे इलाके का सफर महज 10 मिनट में पूरा कर सकते हैं। यहां की सड़कों और गलियों में भारतीय कम, विदेशी ज्यादा नजर आते हैं।
तिब्बत और इजरायल के बीच भलेही हजारों किलोमीटर का फासला है, पर हिमाचल के इस पर्वतीय आंचल में दोनों देशों के नजारे दिखाई देते हैं। तिब्बतियों के धर्मगुरु और राजनीतिक मार्गदर्शक दलाई लामा के प्रवास स्थान मैकल्योडगंज, जिसे लिटिल ल्हासा कहते हैं, के पास ही धरमकोट नामक बस्ती है जो मिनी तेल अवीव के नाम से विख्यात है।
पर्यटन नक्शे पर धरमकोट को ढूंढ़ना कठिन हो सकता है, लेकिन हजारों किलोमीटर दूर से आने वाले यहूदियों को यहां पहुंचने में कोई कठिनाई नहीं आती है। यहूदी इस इलाके से ऐसे परिचित हैं जैसे कोई भारतीय अपने गांव से वाकिफ होता है। धरमकोट और उसके आसपास के इलाकों में भारतीयों की आबादी महज 1200 है, लेकिन यहां अक्सर करीब 5000 यहूदियों का जमावड़ा लगा रहता है।
वैसे, एक चिंताजनक तथ्य यह है कि यहां विदेशियों में नशाखोरी की प्रवृति जोर पकड़ती जा रही है। मौजमस्ती के आलम में गर्क रहना उनकी फितरत बन गई है। एक यहूदी जोनेप कहते हैं, "हम यहां सुकून और मस्ती के लिए आए हैं।"
इन इलाकों की संस्कृति पर तिब्बत और इजरायल का असर स्पष्ट देखा जा सकता है। कई बार तो भारतीयों को ही अचरज होता है कि वे भारत में हैं या तिब्बत व इजरायल में!
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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