शाही सत्ता से बेदखल ज्ञानेंद्र अब कानूनी उलझन में फंसे
सुदेशना सरकार
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काठमांडू, 21 जून (आईएएनएस)। चंद सप्ताह पहले शाही ताज और सिंहासन से वंचित होने वाले पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं। हाल तक संविधान से ऊपर समझे जाने वाले ज्ञानेंद्र और उनके परिवार के कई लोग अब कानूनी उलझन में फंस गए हैं।
शाही सत्ता के 239 वर्षो के इतिहास में यह पहला मौका है जब इस परिवार का कानून से पाला पड़ा है। नेपाली सर्वोच्च न्यायालय उनके खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई की तैयारी में है। इस जनहित याचिका में ज्ञानेंद्र, उनकी पत्नी कोमल, सौतेली मां रत्ना, पुत्र पारस और बहू हिमानी के अलावा प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला की सरकार के खिलाफ भी कार्रवाई की अपील की गई है।
याचिकाकर्ता भूपेंद्र प्रसाद पोखरले खुद पेशे से वकील हैं। उन्होंने उस परिवार को अदालत में घसीट लिया है जो हाल तक संविधान से ऊपर था। पोखरेल ने इस पूर्व शाही परिवार को नारायणहिती महल से निकलकर काठमांडू के बाहरी छोर पर स्थित एक अपेक्षाकृत छोटे महल में रहने की सरकारी स्वीकृति को चुनौती दी है।
पोखरेल का मानना है कि सरकार के इस फैसले से नवगठित संविधान सभा की उस ऐतिहासिक घोषणा का उल्लंघन हुआ है जिसमें राजशाही को खत्म किए जाने और राजा को सामान्य नागरिक का दर्जा दिए जाने का ऐलान किया गया था। वह ज्ञानेंद्र की सौतेली मां रत्ना के प्रति सरकार के उदार रवैये से भी खफा हैं। उन्होंने रत्ना को नारायणहिती में रहने देने की सरकारी इजाजत को भी चुनौती दी है। अदालत ज्ञानेंद्र को तलब कर उनसे अपना रुख स्पष्ट करने को कह सकती है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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