परिवारों को तोड़ रहा है हिंदू विवाह कानून
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अरिजीत पसायत की अवकासकालीन खंडपीठ ने कहा, "हिंदू विवाह कानून ने घरों को जोड़ने से अधिक घरों को तोड़ा है।" शीर्ष अदालत ने खेद जताया कि तलाक के बढ़ते मामलों का इस कारण बिखरे परिवारों के बच्चों पर अनर्थकारी असर पड़ रहा है।
सन 1955 में बने हिंदू विवाह कानून में वर्ष 2003 तक कई संशोधन हो चुके हैं। इसमें हिंदू विवाह को वैध बनाए रखने के लिए कई उपाए शामिल किए गए हैं। अदालत ने कटाक्ष करते हुए कहा कि शादी के समय ही अंतरिम तलाक की अर्जी दाखिल की जा रही है।
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी एक तलाकशुदा द्वारा अपने बच्चे की हिरासत की मांग को लेकर दाखिल अर्जी पर सुनवाई के दौरान की। अलग हुए मां-बाप अदालत में अपनी-अपनी बात रख रहे थे। इस बीच खंडपीठ ने कहा, "बच्चे के वास्ते अहम को खत्म कर देना चाहिए।"
अदालत ने कहा कि वह दंपति के आपसी विवाद के बजाय बच्चे के भविष्य के बारे में ज्यादा चिंतित है। न्यायमूर्ति पसायत ने कहा, "अंतत: बच्च पीड़ित होगा। यदि वह लड़की है तो स्थिति और विकट है, विशेषकर उस बच्ची की शादी के समय।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस