वाराणसी में बहुत मैली हो गई है गंगा
वाराणसी में गंगा इतनी मैली हो गई है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को पवित्र स्नान करने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है। गंगा के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित किया जाना इसका सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है।
उत्तराखंड के टिहरी बांध के कारण गंगा का प्राकृतिक पानी दूषित हो रहा है। गंगा में यहां शहरी कचरे के अलावा औद्योगिक कल-कारखानों का कचरा भी प्रवाहित कर दिया जा रहा है।
गंगा के दूषित होने के और भी कई कारण हैं। मनुष्य व पशुओं के शवों को इसमें प्रवाहित कर दिया जाता है। इसी में लोग कपड़े भी धोते हैं और जानवरों को स्नान करने के लिए भी छोड़ देते हैं।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक 2007-08 के दौरान 3150 मनुष्यों के और 6270 जानवरों के शव गंगा में तैरते पाए गए। गंगा नदी के किनारे 32 हजार शवों का दाह संस्कार किया गया और इसके कारण 300 टन राख व 200 टन अधजले शवों के टुकड़े गंगा में समाहित हुए।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान व प्रौद्योगिकी केंद्र के संयोजक बी. डी. त्रिपाठी ने बताया, "टिहरी के अलावा पांच और बांध गंगा नदी पर निर्माणाधीन हैं। जबकि 20 और बांधों के निर्माण की योजना प्रस्तावित है।"
ज्ञात हो कि गंगा में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर 1980 से लेकर अब तक केंद्र सरकार और इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा गठित सभी विशेषज्ञ समूहों में त्रिपाठी शामिल रहे हैं।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के पूर्व प्रोफेसर जी. डी. अग्रवाल गंगा में बढ़ते प्रदूषण के मद्देनजर इस पर निर्माणाधीन बांधों के खिलाफ पिछले सप्ताह से उत्तरांचल में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हुए हैं।
इंडो-एशियन
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