शाही संहार की पुर्नजांच हो: माओवादी
राजसत्ता से ज्ञानेन्द्र को बेदखल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले माओवादियों ने अब राजभवन नरसंहार कांड की नए सिरे से जांच की मांग उठाई है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2001 के जून महीने में तत्कालीन राजा बीरेन्द्र की भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच राजभवन में हत्या कर दी गई थी। इसके बाद ज्ञानेन्द्र ने सत्ता संभाली थी।
प्रचंड के बाद दूसरे सबसे बड़े माओवादी नेता बाबूराम भट्टराई ने कहा, "नेपाली जनता राजभवन हत्याकांड की नए सिरे से जांच चाहती है। साथ ही वह पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र की संपत्ति की भी जांच चाहती है।"
उल्लेखनीय है नरसंहार के बाद ज्ञानेन्द्र पर आरोप लगे थे कि अपनी सत्ता प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा के चलते उन्होंने ही अपने भाई की हत्या की साजिश रची थी।
भट्टराई ने कहा, "हमें उम्मीद है कि ज्ञानेन्द्र जांच प्रकिया में सहयोग करेंगे, क्योंकि यह उनके ही हित में होगा। यदि वे निर्दोष हैं तो जांच में दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा।"
उन्होंने उम्मीद जताई कि ज्ञानेन्द्र प्रतिक्रियावादी ताकतों के साथ हाथ नहीं मिलाएंगे और नए गणतंत्र के खिलाफ साजिश का हिस्सा नहीं बनेंगे।
उन्होंने कहा, "वे यदि इतिहास से सीख लेते हुए नए नेपाल के निर्माण में सहयोग करते हैं तो हम उन्हें माफी देने को तैयार हैं। "
ज्ञात हो कि सरकारी फरमान का पालन करते हुए बुधवार को ज्ञानेन्द्र ने महल खाली कर दिया था। महल खाली करने से पहले उन्होंने महल में ही एक संवाददाता सम्मेलन का आयोजन किया। नेपाल के शाही परिवार के 239 वर्षो के इतिहास में महल में संवाददाता सम्मेलन का आयोजन एक अभूतपूर्व घटना मानी जा रही है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।