परंपराए बौनी हैं परमजीत के आगे
मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी परमजीत के लिए परंपराएं और सामाजिक रीति रिवाज कोई मायने नहीं रखते हैं। उनकी नजर में अगर किसी चीज की अहमियत हैं तो वह हैं अपनी जिम्मेदारी का ठीक तरह से निर्वाहन करना और उसमें परिवार के सदस्यों की मदद व सहमति मिलना।
वे टेबिल टैनिस खेला करती थीं मगर अचानक उनका जूडो की तरफ झुकाव बढ़ा। इस खेल में उन्होंने कई पदक जीते और मध्यप्रदेश का सर्वोच्च खेल सम्मान विक्रम पुरस्कार भी हासिल किया। वे प्रदेश की पहली लड़की थीं जिन्हें यह पुरस्कार मिला। परमजीत के लिए खेल और जिन्दगी में ज्यादा फर्क नहीं है। वे तो दोनों ही जगह सिर्फ एक ही परिणाम चाहती हैं और वह है विजय।
परमजीत की जिन्दगी में अचानक बदलाव आया और उनकी दुनिया ही बदल गई। भाई प्रीतम सिंह जो उन्हें बेटी की तरह चाहता था उसकी अचानक मौत हो गई। बात अंतिम संस्कार करने की आई तो परमजीत ने पिता निहाल सिंह की सहमति से भाई को मुखाग्नि दी। हिन्दू परंपरा के मुताबिक महिलाएं अंतिम संस्कार करना तो दूर श्मशान घाट तक नहीं जाती हैं। परमजीत ने इस परंपरा को तोड़ा।
उसके बाद पिता निहाल सिंह और मां विद्या देवी सिंह का निधन हुआ तो परमजीत ने सनातन परंपरा के मुताबिक उनका भी अंतिम संस्कार किया। अभी हाल ही में परमजीत ने अपनी सात पीढ़ियों का गया (बिहार) में जाकर पिंडदान भी किया हैं।
हाउसिंग बोर्ड में सुरक्षा अधिकारी के पद पर तैनात परमजीत अन्य लड़कियों से कई मायने में अलग हैं। वे कहती हैं कि शुरू से ही उनकी कुछ अलग करने की आदत रही हैं। ऐसा करने पर नुकसान भी हो जाए उन्हें इसकी परवाह नहीं हैं। वे बताती हैं कि जब उन्होंने अपने परिजनों का अंतिम संस्कार किया तो उन्हें लोगों की आलोचना का शिकार होना पड़ा, मगर इन आलोचनाओं का उनकी सेहत पर कोई फ र्क नहीं पड़ा।
सिर मुंडाए परमजीत को देखकर लोग सवाल करते हैं मगर वे उन सवालों का अपने ही अंदाज में जवाब देती हैं। जब लड़के माता पिता को मुखाग्नि दे सकते हैं तो लडकियां ऐसा क्यों नहीं कर सकती। परमजीत किसी भी मामले में लड़कों से अपने आप को अलग मानने के लिए तैयार नहीं हैं। विपरीत हालातों के बीच रहने की परमजीत को आदत सी हो गई हैं मगर वे इन हालातों पर जीत को ही अपना धर्म मानती हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस