'नेपाल नरेश के पतन की कीमत भारत को भी चुकानी पड़ेगी'
काठमांडू, 30 मई (आईएएनएस)। नेपाल में राजशाही की समाप्ति और ज्ञानेंद्र के 'नरेश' से 'आम नागरिक' बनने की ऐतिहासिक घटना की कीमत भारत को भी चुकानी पड़ेगी। यह कहना है ज्ञानेंद्र के एक वफादार का। उनके मुताबिक भारत ने राजशाही के पतन के कारण ज्ञानेंद्र के रूप में एक सच्चा दोस्त खो दिया है।
काठमांडू, 30 मई (आईएएनएस)। नेपाल में राजशाही की समाप्ति और ज्ञानेंद्र के 'नरेश' से 'आम नागरिक' बनने की ऐतिहासिक घटना की कीमत भारत को भी चुकानी पड़ेगी। यह कहना है ज्ञानेंद्र के एक वफादार का। उनके मुताबिक भारत ने राजशाही के पतन के कारण ज्ञानेंद्र के रूप में एक सच्चा दोस्त खो दिया है।
सदियों से शाही सत्ता का प्रतीक रहे नारायणहिती महल स्थित शाही सचिवालय, जिसका वजूद अब मिट चुका है, के एक अधिकारी ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर कहा कि देश में शाही शासन की समाप्ति के साथ ही भारत ने एक सच्चा दोस्त खो दिया है। उन्होंने कहा कि भारत को आज न कल इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।
उन्होंने कहा कि नेपाल नरेश ने कभी भारत विरोधी गतिविधियों को देश में पनपने नहीं दिया और न ही उन्होंने कभी ऐसा कदम उठाया जिससे भारत के हितों को नुकसान हो। उनका कहना है कि भारत के हितों के लिहाज से राजशाही के महत्व को भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू समझते थे। यही धारणा स्वर्गीया इंदिरा गांधी की थी। उनका कहना है कि भारत की मौजूदा सरकार ने नरेश का साथ न देकर भारत का अहित किया है।
शाही परिवार के कई अहम निर्णयों में उनकी भूमिका रही है। उन्होंने कहा कि नेपाल में माओवादी छापामारों की सफलता से पूरे भारतीय उप महाद्वीप में अस्थिरता की नींव पड़ गई है। वह कहते हैं कि अगर आज नेपाल में प्रचंड की जीत हो सकती है तो भारत में 2014 के चुनाव में माओवादी नेता गणपति को भी सफलता मिलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। वह पूछते हैं कि क्या भारत के लिए यह भयावह स्थिति नहीं है कि उसकी 40 फीसदी आबादी नक्सलवाद की चपेट में है?
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।