बनारसः मंदिर तोड़ने पर साधुओं का धरना
गौरतलब है की इस समय विश्वनाथ मंदिर का विस्तारीकरण चल रहा है जो शास्त्र सम्मत न होने की वजह से विद्वानों और प्रशासन में काफी दिनों से वाद विवाद चल रहा था, लेकिन जब प्रशासन ने एक ऐसे मंदिर को तोड़ना शुरू किया जो न सिर्फ अति प्राचीन है बल्कि कहीं से भी टूटने लायक नहीं था।
विरोध का नेतृत्व कर रहे हिथया राम मठ के महंत भवानी नंदन यती जी ने कहा कि हम न तो सुंदरीकरण के विरोध में हैं और न ही विस्तारीकरण के , लेकिन हम लोग यह जरूर चाहते हैं कि उस मंदिर को न तोड़ा जाय जो अभी ठीक-ठाक स्थिति में है। विद्या मठ के प्रमुख आचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि प्रशासन हिंदुओं की आस्थाओं के साथ खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रहा है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि प्रशासन इतना ही विस्तारीकरण करना चाहता है तो मस्जिद की एक ईंट भी बिना उनकी आज्ञा के गिराकर देखे, पता चाल जाएगा कि आस्था के साथ खेलने का क्या अंजाम होता है। काम शांतिपूर्वक चल रहा था। चार घंटे बीतने के बाद भी प्रशासन की तरफ से कोई भी साधुओं से मिलने नहीं आया।
हालांकि इतने समय में प्रशासन के लोंगो ने एक चाल जरुर चली। वाराणसी के ही एक विवादित साधू नारेंद्रानंद को अपने पक्ष में धरना स्थल पर बुलाकर काम शुरू करने का दबाव डलवाने की असफल कोशिश करने लगे। थोड़ी देर के लिए रुका हुआ काम शुरू भी हो गया लेकिन साधुओं के जबरदस्त विरोध के कारण काम फिर से रोक दिया गया।
रानी भवानी मंदिर नागर शैली में लाल पत्थर से बना हुआ सैकड़ों साल पुराना मंदिर है जो अभी कहीं से भी पुराना नहीं लगता। लेकिन प्रशासन उसे तोड़ने पर न सिर्फ आमादा है बल्कि उसका ऊपरी हिस्सा जल्दीबाजी में तोड़ भी दिया है। इस बाबत नगर मजिस्ट्रेट केदार नाथ सिंह से बात करने पर उन्होंने कहा कि इसे तोड़ने का आदेश ऊपर से है इस लिए हम लोग इसमें कुछ भी नही कर सकते है।
प्रशासन अपनी जिद पर अड़ा हुआ है और साधु समाज अपनी जिद पर। अब देखना यह है कि नाक का सवाल बना चुका प्रशासन पीछे हटाता है या फिर धर्म और संस्कृति कि दुहाई देने वाले साधु। जीत किसी की भी हो लेकिन इन दोनों ही मामलों में हार उनकी ही होगी जो वाराणसी को हैरिटेज सिटी बनने का सपना देखते हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस