लड़कियों की घटती संख्या के खिलाफ है 'लाडली'
नई दिल्ली , 17 मई (आईएएनएस)। पूरी दुनिया में महिलाओं के साथ भेदभाव और दोयम दर्जे का बर्ताव तो होता है, लेकिन लड़कियों को उनके जन्म से ही पहले ही मारने की प्रवृत्ति केवल भारत में ही देखी जा सकती है।
भारत में लड़कियों की घटती जन्म दर केवल प्राकृतिक संयोग नहीं है। इसके लिए बच्चे के जन्म के पूर्व लिंग की जांच और मादा भ्रूणों की हत्या काफी हद तक जिम्मेदार है। सरकार द्वारा बच्चे के जन्म के पूर्व लिंग जांच पर रोक के बावजूद यह गोरखधंधा बेरोकटोक जारी है।
दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे संपन्न राज्यों में लड़कियों की घटती संख्या काफी चिंताजनक है। समाज में लड़कियों की घटती संख्या के खतरे के प्रति सावधान करने और उनकी संख्या बढ़ाने के लिए जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 'पापुलेशन फर्स्ट' नामक स्वयंसेवी संस्था ने संयुक्त राष्ट्र पापुलेशन फंड (यूएनएफपी) के सहयोग से 'लाडली' अभियान चलाया है।
लाडली योजना का उद्देश्य समाज में लड़कियों की उपस्थिति के सकारात्मक पहलुओं का प्रचार करना है। जनगणना के आंकड़ों से ऐसे संकेत मिले हैं कि आने वाले पांच वर्षो में भारत में हर साल करीब 50 लाख मादा भ्रूणों का गर्भपात कराया जाएगा।
इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए काफी प्रयास करने की जरूरत है। सदियों पुरानी नारी विरोधी मानसिकता को रोकने के लिए पापुलेशन फर्स्ट 'लाडली' नामक एक भावनात्मक प्रचार अभियान चला रही है।
'लाडली ' अभियान को सफल बनाने में समाचार माध्यम बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। मीडिया की सकारात्मक भूमिका को प्रोत्साहित करने के लिए पापुलेशन फर्स्ट और यूएनएफपी ने 'लाडली मीडिया पुरस्कार' शुरू किए हैं। देश में लैंगिक समानता के लिए कार्य करने वाले मीडियाकर्मियों को पहली बार 2007 में लाडली मीडिया पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
इस वर्ष के मीडिया कर्मियों के साथ ही शाहरूख खान की फिल्म चक दे के निर्देशक शिमित अमीन को भी लाडली पुरस्कार दिया गया। चक दे के माध्यम से समाज में महिलाओं के दोयम दर्जे के हालात को बखूबी सामने रखा गया है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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