मैं किसी का पद छीनना नहीं चाहता : अर्जुन सिंह (पुस्तक 'मोहिं कहां विश्राम के' कुछ अंश)
नई दिल्ली, 13 मई (आईएएनएस)। "मैंने किसी के ऊपर कोई आरोप नहीं लगाया। किसी की ओर उंगली नहीं उठाई। मेरा किसी में कोई अविश्वास नहीं है, और न मैं किसी के पद को छीनना चाहता हूं। सवाल यह है कि आज इस देश के हालात ऐसे बन गए हैं कि यदि कांग्रेस कमजोर हो गई, हमारा संगठन छिन्न-भिन्न हो गया तो उसकी वजह से भारत का बिखराव शुरू हो जाएगा।"
उपरोक्त कथन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह का है। उन्होंने यह बात हाल ही में 'किताब घर प्रकाशन' से प्रकाशित पुस्तक 'मोहिं कहां विश्राम' में कही है।
इस पुस्तक में अर्जुन सिंह पर उनके करीबी राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, संस्कृतिकर्मियों, पत्रकारों और उनके परिवारजनों के संस्मरणात्मक आलेखों के अलावा खुद अर्जुन सिंह के आलेख और समय-समय पर दिए गए उनके भाषणों के संपादित अंशों का समावेश है।
अर्जुन सिंह कहते हैं, " सबसे बड़ी बात जो प्रजातंत्र में होती है, वह है- आम जनता के बीच में हम अपने लिए आस्था और विश्वास पैदा कर सकें। बड़े-बड़े लोगों के हाथ में यह नहीं है। साधारण और आम लोगों के हाथ में होता है और वे क्या सोचते हैं? उस हैसियत से वे फैसला करते हैं। यही प्रजातंत्र की महिमा है। यही प्रजातंत्र की महानता है, और इसीलिए प्रजातंत्र ही एक ऐसा तरीका है, जहां आम आदमी के विश्वास पर देश का कामकाज चलता है।"
पुस्तक में एक जगह कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए अर्जुन सिंह कहते हैं,"ईष्र्या न रखें, वैमनस्यता न रखें और सभी साथियों को साथ में रखकर चलने की कोशिश करें। और फिर यदि कोई गलतफहमी पैदा करता है, कुछ करता है, तो यह समझ लीजिए- अंग्रेजी में एक कहावत है- वेजेज ऑफ ड्यूटी। अर्थात कर्तव्य की तनख्वाह है। जब कोई कर्तव्य करते हैं तो उसकी अच्छाई-बुराई दोनों मिलती है। उसको मान लेना चाहिए कि उसी का यह उपहार है। मैं व्यक्तिगत स्तर पर कांग्रेस को कमजोर नहीं देखना चाहता हूं। उसमें किसी प्रकार के विभाजन की रेखाएं नहीं खींचता हूं।"
एक अन्य जगह अर्जुन सिंह कहते हैं,"जो लोग नाराज हैं, किन्हीं भी कारणों से नाराज हैं, उनकी नाराजगी के लिए मेरे मन में दु:ख है और मैंने कहा है कि अगर कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि मेरा कांग्रेस में रहना अच्छा नहीं है तो कांग्रेस से निष्कासन तो क्या, मैं मृत्युदंड सहने को भी तैयार हूं।"
अर्जुन सिंह कहते हैं,"मैं इसलिए ये बातें कह रहा हूं, क्योंकि हम सब चाहते हैं कि कांग्रेस पार्टी मजबूत हो, हम सब चाहते हैं कि हम सब मिलकर इस पार्टी की सेवा करें और संघर्ष के एक सौ आठ साल के इतिहास को अभी कम से कम एक शताब्दी और चलाने की कोशिश करें। क्योंकि हम चाहते हैं कि हमारे वे नौजवान जो आज कांग्रेस से जुड़े हुए हैं, कोई विधायक हैं, तो कोई एम.पी हैं, कुछ मंत्री हैं और कुछ वैसे ही इस पार्टी के कार्यकर्ता हैं, जिनका पूरा राजनीतिक भविष्य आगे पड़ा हुआ है, कम से कम उन्हें विरासत में एक मजबूत और जनता की भलाई करने वाली कांग्रेस मिले। ऐसी कांग्रेस न मिले, जिसको लेकर वे चार कदम भी आगे न चल सकें और अपने भविष्य को वहीं पर समाप्त कर दें। इसके लिए यह जरूरी है कि हम बिना किसी डर के, निर्भीकता से एक प्रजातांत्रिक देश में जो मुद्दे होते हैं उनको जनता के बीच में ले जाएं। अपनी संस्था के माध्यम से ले जाएं और जनता का विश्वास अर्जित करें। अगर जनता का विश्वास हमको नहीं मिलेगा तो हम कितनी ही हेकड़ी भरते रहें, जिस दिन चुनाव होगा हम औंधे मुंह गिरकर समाप्त हो जाएंगे। ऐसी परिस्थिति न आए- यह हम सबको सोचना है और इसी के लिए हम काम करना चाहते हैं।
अर्जुन सिंह कहते हैं,"मैं अपने कर्तव्य को जानता हूं। मेरा कर्तव्य कांग्रेस के सिपाही की हैसियत से क्या है, वह महत्वपूर्ण है। किसी की दुश्मनी या किसी की दोस्ती महत्वपूर्ण नहीं है। क्या कर्तव्य है ऐसे समय पर, यह मैं जानता हूं। कांग्रेस में फूट डालने का मेरा कर्तव्य नहीं है।"
पुस्तक में कांग्रेस नेता वंसत साठे, दिग्विजय सिंह, अजित जोगी, मोहम्मद युनूस, समाजवादी नेता यमुना प्रसाद शास्त्री, रघु ठाकुर, भाजपा नेता कैलाश नारायण सारंग, लखीराम अग्रवाल, संस्कृतिकर्मी, पुपुल जयकर, जगदीश स्वामीनाथन, यामिनी कृष्णमूर्ति, मणि कौल, व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई आदि के आलेख हैं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
**