जैट्रोफा की खेती से स्वास्थ्य पर पड़ रहा है बुरा प्रभाव
रायपुर, 8 मई (आईएएनएस)। जैव ईंधन का महत्वपूर्ण स्रोत जैट्रोफा, मिट्टी और जलीय जीवों के लिए तो नुकसान देह होता ही है साथ ही यह त्वचा के कैंसर और बच्चों में मस्तिष्क संबंधी बीमारियों का कारण भी बन सकता है।
रायपुर, 8 मई (आईएएनएस)। जैव ईंधन का महत्वपूर्ण स्रोत जैट्रोफा, मिट्टी और जलीय जीवों के लिए तो नुकसान देह होता ही है साथ ही यह त्वचा के कैंसर और बच्चों में मस्तिष्क संबंधी बीमारियों का कारण भी बन सकता है।
छत्तीसगढ़ में व्यापक पैमाने पर उगाए जा रहे इस पौधे के बीजों में 37 फीसदी तक तेल होता है जिसे बिना प्रसंस्करण के ईंधन के रूप में इस्तेमाल में लाया जा सकता है।
उत्तरी अमेरिका के 'मेडिसिनल प्लांट वर्किं ग ग्रुप' से संबद्ध रायपुर के कृषि वैज्ञानिक पंकज ओढ़िया जिन्होंने जैट्रोफा पर लंबे समय तक शोध किया है। उन्होंने आईएएनएस से कहा, "शोधकर्ताओं ने 1987 में ही पता लगाया था कि जैट्रोफा के तेल में ट्यूमर को बढ़वा देने वाले तत्व होते हैं। सारी दुनिया में लोग जानते हैं कि इसका तेल त्वचा की बीमारियों के लिए जिम्मेदार है और इसके बीज के किसी भी तरह पेट में चले जाने से मस्तिष्क संबंधी विकार हो सकते हैं।"
उन्होंने बताया कि ग्रामीण इलाकों में जैट्रोफा का भारी पैमाने पर उत्पादन वहां के बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में 50 बच्चों को जैट्रोफा के बीज खाने के बाद खराब हालत में अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था।
ओढ़िया ने बताया कि जैट्रोफा के पौधे का मिट्टी और जलीय जीवों पर भी विषाक्त असर पड़ता है। उन्होंने कहा कि भारत में बड़े पैमाने पर उगाई जाने वाली अरहर दाल और विभिन्न वनस्पतियों पर भी इसका खराब असर पड़ता है। पर्यावरण विज्ञानियों ने इसे भविष्य के लिए एक आपदा करार दिया है।
गौरतलब है कि कई राज्यों में जैट्रोफा की व्यापक खेती की जा रही है ताकि इससे सस्ता ईंधन बनाया जा सके।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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