काशी का किशन पंच तत्व में विलीन
पंडित किशन महाराज का दाह संस्कार वहीं किया गया जहां बनारस के राजा विभूति नारायण और उनकी रानी साहिबा का किया गया था। दाह संस्कार के समय राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व वाराणसी के कमिश्नर नितिन रमेश गोकर्ण ने किया।
इसके अलावा श्मशान घाट पर बनारस के संगीत घरानों के संगीतज्ञों, साहित्यकारों और काशी की जनता भारी संख्या में उपस्थित थी। सभी ने अपने प्रिय तबला वादक को नम आंखों से अंतिम विदाई दी।
किशन महाराज का शव उनके निवास स्थान से ठीक चार बजे मणिकर्णिका घाट के लिए पुलिस की फूलों से सजी गाड़ी से रवाना हुआ। कबीरचौरा से मणिकर्णिका घाट तक पहुंचने में लगभग दो घंटे लगे, क्योंकि महाराज जी की शव यात्रा में हजारों लोग पैदल ही चल रहे थे। घाट पर पहुंच कर शव को गंगा में स्नान कराया गया।
इसके बाद पुलिस के जवानों ने पंडित जी के सम्मान में गार्ड ऑफ आनर पेश किया और उनके बेटे ने उन्हें मुखाग्नि दी। इस अवसर पर उपस्थित सभी लोगों ने पंडित जी के जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों को याद करते हुए बताया कि पंडित किशन महाराज के जाने से कला जगत को काफी गहरा धक्का लगा है।
उनके साथ में खेलकर जवान हुए अल्हड़ बनारसी ने नम आंखों से बताया कि एक तो इनके जैसा कलाकार अब पैदा नहीं होगा और यदि पैदा हो भी गया तो उसे समझने वाला नहीं होगा।
शास्त्रीय संगीत के पंडित राजेश्वर आचार्य ने कहा कि किशन महाराज सम्पूर्ण काशी के प्रतिनिधि थे तथा वे एक पूर्ण कलाकार थे। पंडित छन्नू लाल मिश्रा ने कहा कि किशन महाराज के जाने से तबला जगत को भारी नुकसान हुआ है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस