झाबुआः बांस के वनों में चालीस साल बाद आई बहार
आदिवासी बाहुल्य जिले झाबुआ के कट्ठीवाड़ा और भाभरा वन परिक्षेत्र कटंग बांस के लिए जाना जाता हैं। इस परिक्षेत्र में लगभग साढे 6 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बांस के वन हैं। इन वनों में वर्तमान दौर में सामूहिक पुष्पन की घटनाएं हो रही हैं। बांसों के समूह जिन्हें भिर्रो कहा जाता है से सामूहिक पुष्पन से निकलने वाले बीजों का संग्रहण भी शुरू कर दिया गया हैं।
वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस क्षेत्र में अब तक चार क्वि टंल से अधिक बीज एकत्रित किया जा चुका हैं और यह कार्य जारी हैं। इन बीजों के लिए प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर राइजोम बैंक बनाए जाएंगे जिनसे आने वाले वषों में रोपण के लिए पौधे प्राप्त किए जा सकेंगे।
एक तरह से कहा जाए तो झाबुआ के जंगलों मे खड़े कटंग बांस के भिर्रो का अन्तिम समय आ गया हैं क्योंकि सामूहिक पुष्पन के बाद यह सूख जाएंगे। वन विभाग की योजना के मुताबिक जहां एक ओर बीज एकत्रित किए जा रहे हैं वहीं कुछ बीज जंगल में ही रह जाएंगे और बरसात आने पर इन बीजों से बांस फिर नया जन्म लेने लगेंगे।
इस दौर में बांस के वन की सुरक्षा सबसे अहम होती हैं इसलिए इस वन क्षेत्र की आग से सुरक्षा के लिए विशेष तौर पर सफाई अभियान चलाया जा रहा हैं। बांस वनों में चालीस साल में एक बार होने वाले सामूहिक पुष्पन की घटना की गांव के लोग अलग अलग तरह से व्याख्या करते हैं। इसके बावजूद इसे बांस केवन के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम माना जाता हैं क्योंकि इस प्रजाति के जीवन काल में सिर्फ एक बार ही सामूहिक पुष्पन का मौका आता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस