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समर कैम्प में बच्चे सीख रहे हैं संस्कार और संस्कृति

By Staff
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वाराणसी, 2 मई (आईएएनएस)। आम तौर पर बच्चों के समर कैम्पों में डांस, तैराकी, पेंटिंग, संगीत और मौज-मस्ती ही सिखाया जाता है लेकिन वाराणसी के एक पब्लिक स्कूल में तो समर कैम्प में मौज-मस्ती के साथ-साथ वेद, उपनिषद और गीता का ज्ञान भी दिया जा रहा है।

वाराणसी, 2 मई (आईएएनएस)। आम तौर पर बच्चों के समर कैम्पों में डांस, तैराकी, पेंटिंग, संगीत और मौज-मस्ती ही सिखाया जाता है लेकिन वाराणसी के एक पब्लिक स्कूल में तो समर कैम्प में मौज-मस्ती के साथ-साथ वेद, उपनिषद और गीता का ज्ञान भी दिया जा रहा है।

बच्चे भी न सिर्फ इसे बड़े चाव से सीख रहे हैं बल्कि उनके अभिभावक ख़ुद भी इस कवायद में बच्चों के साथ बड़ी संख्या में उपस्थित हो रहे हैं।

शहर के ईशिता पब्लिक स्कूल में सुबह से ही वेद मंत्रों का पाठ गूंजने लगता है। नर्सरी से लेकर कक्षा पांच तक के बच्चों को सबसे पहले संस्कार की सामूहिक क्लास कराई जाती है। इसमें, उन्हें माता पिता को सुबह उठकर प्रणाम करने से लेकर अन्य बड़े बुजुर्गो का सम्मान करना सिखाया जाता है। इसके बाद सभी बच्चों योग सिखाया जाता है ।

संस्कार की शिक्षा के बाद सभी बच्चों को स्कूल की तरफ से दिया गया धोती कुर्ता पहनाया जाता है। संस्कार सिखाने वाले पंडित दीनानाथ शास्त्री इन बच्चों को चंदन का टीका लगाते हैं। कतार में खड़े होकर सभी बच्चे राष्ट्रीय गान गाते हैं और उसके बाद वेद का अध्ययन कराया जाता है। भारत माता की जय और जय हिंद के नारों के साथ शुरू होती है वेद मंत्रों की क्लास।

इन बच्चों को संस्कार सिखाने वाले पंडित दीनानाथ शास्त्री कहते हैं कि पढ़ाई के साथ साथ बच्चों को संस्कार भी सिखाया जाना बहुत जरूरी है क्योंकि नई पीढ़ी के पास सब कुछ है लेकिन संस्कार नहीं है।

अभी तोतली जुबान में बोलने वाला साढ़े तीन साल का कार्तिकेय जब गायत्री मन्त्र का उच्चारण करता है तो कहीं से नहीं लगता है कि वह ठीक से लिख भी पाता होगा। कक्षा एक की छात्रा पारूल गोयल को तो वेद की कई ऋचाएं, गीता के श्लोक और रामायण की कई चौपाइयां कंठस्थ हो चुकी हैं।

पारूल की मां सरिता गोयल कहती हैं कि वर्तमान समय आधुनिकता और फैशन परस्ती का चल रहा है। जिस तरह से टीवी संस्कृति बच्चों पर हावी होती जा रही है उससे आने वाले दिनों के बारे में सोचकर बड़ा डर लगता है। ऐसे समय में बच्चे सुबह उठकर यदि माता-पिता के पैर छूने जैसा संस्कार सीख जाएं तो बड़ी बात है।

ईशिता पब्लिक स्कूल की प्राचार्य इंदु सारस्वत बताती हैं कि समय के साथ चलने के लिए अंग्रेजी शिक्षा तो बहुत जरूरी है लेकिन संस्कार और राष्ट्रीयता भी उतनी ही जरूरी है। इसलिए हमने इस स्कूल में आधुनिक शिक्षा के साथ संस्कार और संस्कृति का बीज भी बच्चों में डालने की कोशिश की है।

उन्होंने बताया कि यह समर कैम्प पूरे दो महीने चलेगा। इसमें बच्चों को संस्कार और संस्कृति की शिक्षा के अलावा पेंटिंग, तैराकी, गीत, संगीत और व्यक्तित्व निखारने के लिए भी पर्याप्त अवसर दिये जाएंगे।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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