ईरानी लोक कला पर फिदा हैं भारतीय भी
नई दिल्ली, 2 मई (आईएएनएस)। नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में ईरानी लोक संस्कृति अनौखी छटा बिखेर रही है। अगले तीन दिनों तक ईरानी प्यालों और ईरानी चाय की चुस्कियों के साथ इस प्राचीन संस्कृति से रू-ब-रू हुआ जा सकेगा।
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) और इस्लामिक गणराज्य ईरान के उच्चायोग के संयुक्त तत्वावधान में यहां पांच दिवसीय सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन किया गया है। इस दौरान लोक गायकी और वाद्य यंत्रों की बहुरंगी तानें इबादत के रंग घोले इसके प्राचीन और समृद्ध होने का एहसास कराती है।
संग्रहालय में प्रदर्शित ईसा पूर्व 500 वर्ष की कई मूर्तियां इसका सहज प्रमाण प्रस्तुत करती हैं। यहां एक तरफ रखी फिरदोसी की मूर्ति जहां ईरान की समृद्ध साहित्यिक परंपरा की याद दिलाती है वहीं रुस्तम की मूर्ति ईरानियों के बहादुरी के किस्से बयां करती है।
प्रदर्शनी का लुत्फ उठाने आए कंप्यूटर इंजीनियर अजय चौधरी कहते हैं, "मेरे भाई खाड़ी देश में रहते हैं और उनके मुंह से ईरानी शिल्पकारी के बारे में काफी सुना है तो आज देखने आ गए।" उन्होंने कहा कि जितना सुना था उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत और बारीक शिल्पकारी देखने को मिली।
ईरान के 'एंथ्रोपोलॉजिकल म्यूजियम' से लाए गए तुर्कमानी आभूषणों को भी यहां प्रदर्शित किया गया है। लजीज ईरानी व्यंजनों का लुत्फ उठाते हुए भावना नारायण कहती हैं, इन व्यंजनों को खाने के बाद यकीन हो जाता है कि ईरानी खाने-पीने में हम भारतीयों की तरह ही शौकीन हैं।
इस मौके पर आईसीसीआर के अध्यक्ष डा. कर्ण सिंह ने कहा, "भारत का ईरान से गहरा सांस्कृतिक रिश्ता रहा है। सूफी संगीत इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। मध्यकाल में सूफी गायक मौलाना जलालूद्दीन रूमी ईरान से ही भारत आए थे। आज यह संगीत भारत के घर-घर में सुना जाता है।"
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।