बिहार में घुमंतू जनजाति की बदलेगी किस्मत

By Staff
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nomadic tribes
पटना, 2 मईः बंदर-भालू का तमाशा दिखाने वाले, रस्सियों पर करतब दिखाकर पेट पालने वाले और घूम-घूम कर जड़ी-बूटी बेचने वालों की किस्मत बदलने वाली है। बिहार की नीतीश कुमार सरकार इन पेशे से जुड़ी खानाबदोश जनजातियों की शिक्षा और रहन-सहन के स्तर को भी उंचा उठाने के लिए पहल करने जा रही है।

अब बिहार सरकार खुली जगहों, सड़क के किनारे, रेलवे स्टेशनों के निकट, मंदिर-मस्जिद के पास अस्थायी झोपड़ियां डालकर रहने वाली घुमंतू जनजातियों के लिए स्थायी आवास उपलब्ध कराने वाली है।

राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, "बिहार में विमुक्त, घुमंतू एवं अर्धघुमंतू जनजातियों का विस्तृत सर्वेक्षण कराया जा रहा है। महादलितों की तर्ज पर उनके विकास के लिए भी सरकार कार्ययोजना तैयार कर चुकी है। अब शीघ्र ही इन कार्ययोजना को अमलीजामा पहनाया जाएगा।"

उधर राष्ट्रीय घुमंतू जनजाति आयोग के अध्यक्ष बालकृष्ण रेणके बताते हैं कि देश में 500 ऐसी जनजातियां हैं, जिसकी आबादी करीब 10 करोड़ है। इसमें मात्र 5 प्रतिशत लोग ही साक्षर हैं। उन्होंने कहा, "घुमंतू जनजातियों को स्थायी मकान और रोजगार उपलब्ध कराने के संबंध में आयोग विभिन्न पहलुओं पर गहनता के साथ विचार कर रहा है।

परंपरागत धंधों के साथ जनजातियों की रोजी-रोटी की समुचित व्यवस्था की जा सके, इसके प्रयास किये जा रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने जनजातियों के बीच फैली बुराइयों को दूर करने के लिए जन जागरूकता अभियान भी चलाने पर बल दिया जाएगा।"

राज्य के कल्याण मंत्री जीतनराम मांझी ने बताया कि बिहार में घुमंतु जनजातियों में मुख्यत: बंजारा और आदिम जनजाति समूह के लोग हैं। बिहार में बंजारों की आबादी करीब 2500 तथा आदिम जनजाति समूह की आबादी करीब दस हजार है।

एक जगह नहीं रहने के कारण इनके बारे में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है। उन्होंने बताया कि घुमंतू जनजातियों के उत्थान के लिए सरकार पहले सर्वेक्षण कराएगी, उसके बाद उनके कल्याण के लिए कई योजनाओं को शुरुआत करेगी।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस

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