निर्मला देशपांडे नहीं रहीं (लीड-2)
नई दिल्ली, 1 मई (आईएएनएस)। प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकर्ता और राज्यसभा सदस्य निर्मला देशपांडे का गुरुवार तड़के निधन हो गया। वह 79 वर्ष की थीं।
सुश्री देशपांडे का अंतिम संस्कार शुक्रवार को लोदी रोड पर स्थित शवदाहगृह में सभी धार्मिक प्रार्थनाओं से साथ किया जाएगा। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सुश्री देशपांडे के निधन पर गहरा शोक प्रकट किया है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने शोक संदेश में कहा, "निर्मला देशपांडे सच्ची गांधीवादी थीं और उन्होंने अपना जीवन गरीबों की सेवा में अर्पित कर दिया ।
उन्होंने कहा, "वह गांधी के मूल्यों पर आधारित सहज, सरल और ईमानदार समाज के निर्माण में लगी रहीं। वह मानवीय मूल्यों और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध थीं। निर्मलाजी जनता की नेता थीं।"
देशपांडे की पूर्व निजी सचिव पीटर पारेखापेटिल ने कहा, "उन्होंने जीवनभर शांति के लिए संघर्ष किया और मरने के बाद भी उनके हाथ बंधे हुए थे।"
उन्होंने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "हाल के दिनों में वह अस्पताल नहीं गई थीं और न ही जोड़ों में दर्द के सिवा किसी प्रकार की तकलीफ का जिक्र किया था। उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से मृत्यु को गले लगा लिया।"
उनका जन्म 17 अक्टूबर 1929 में नागपुर में हुआ था। उनकी माता का नाम विमलाबाई और पिता का पी. वाई. देशपांडे था।
वह महात्मा गांधी की समाधि पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य गणमान्य लोगों के साथ हमेशा दिखती थीं। उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन नागपुर के मोरिस कॉलेज में राजनीतिक विज्ञान की प्राध्यापक के रूप में शुरू किया था।
बाद में वह वर्ष 1952 में आचार्य विनोबा भावे के साथ मिलकर भू-दान आंदोलन से जुड़ गईं और उनके साथ देशभर में 40,000 किलोमीटर की पैदल यात्रा की।
देशपांडे को वर्ष 1997 और 2004 में राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया था । उन्हें पद्म विभूषण और राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।