आदिवासियों की कोशिश से बढ़ा भूजल स्तर
पानी की समस्या से निजात पाने के लिए यहां के आदिवासियों ने परंपरागत तकनीक का इस्तेमाल करके पहले छोटे-छोटे तालाब बनाए और बरसात का पानी उसमें इकट्ठा किया। अब यह पानी न सिर्फ पशुओं के पानी के काम आ रहा है बल्कि लोगों की आम जरूरतों को भी पूरा कर रहा है।
लगभग एक दशक तक पानी के लिए तरस चुके 80 वर्षीय बलराम खरवार अब अक्सर खुशी के गीत गुनगुनाया करते हैं। गरीबी में जीवन बसर करने वाले बलराम बताते हैं कि पानी की कमी इस इलाके के लिए एक बड़ी समस्या थी। सबसे अधिक कष्ट हमारे पशुओं को होता था लेकिन अब हमारे गांव के चारों तरफ तालाबों में पानी भरा है और पानी की कोई कमी नहीं है।
कठिनाई के दिनों में यहां के आदिवासियों को एक तरकीब सूझी और उन लोगों ने उबड़-खाबड़ जमीन को घेरकर तालाब का रूप दे डाला। धीरे-धीरे बरसात का पानी इकट्ठा होने दिया। पहले वर्ष गांव में केवल दो तालाब बनाए गए थे। अब सात हो गए हैं। इन तालाबों के बन जाने से पानी की समस्या पूरी तरह से खत्म हो गई है।
गुरमुरा गांव के सुखदेव और राजदुलारे बताते हैं कि पहले हमलोगों को खाने से ज्यादा पानी कि चिंता लगी रहती थी। गांव में यह खुशहाली किसी सरकारी मदद से नहीं बल्कि आदिवासियों की जीतोड़ मेहनत से आई है। अब तक जो तालाब सूख जाया करते थे उनमें अभी भी पानी भरा हुआ है।
आदिवासियों द्वारा छोटे छोटे तालाब बनाकर पानी की समस्या से निजात पाने की सफल तकनीक से प्रेरित होकर 'पयस्वनी' नामक स्वयंसेवी संस्था आगे बढ़ कर इस तकनीक को अन्य आदिवासी इलाकों में आजमाने की कोशिश में लगी है।
संस्था ने चौपन ब्लाक के सलईबनवा ,बाभनमरी ,चिकारादाद, गुरमुरा और तेवरी गांव में लगभग तीन दर्जन छोटे छोटे तालाब बनवाए हैं। मात्र दो वर्षो के प्रयास से पूरा इलाका न सिर्फ हरा-भरा हो गया है बल्कि इस क्षेत्र की तस्वीर ही बदल गई है।
पयस्वनी के संयोजक नरेन्द्र नीरव बताते है कि सरकार वाटर हारवेस्टिंग के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है लेकिन यहां के अदिवासियों ने बिना एक रुपया खर्च किए न सिर्फ इस क्षेत्र का जल स्तर बढ़ा दिया है बल्कि खुद के लिए शुद्ध पानी का भी इंतजाम कर लिया है।
भूगर्भ शास्त्री योगेन्द्र सिंह कहते हैं कि यदि किसी इलाके में बरसात का पानी पूरी तरह इकट्ठा कर लिया जाए तो न सिर्फ उस इलाके में इफरात पानी की व्यवस्था हो जाएगी बल्कि क्षेत्र का भूजल स्तर भी ऊपर उठ जाएगा। सोनभद्र के आदिवासियों ने ऐसा ही किया है। इनका काम देश के लिए एक प्रेरणादायी है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस