पूर्व राजनयिक ने लिखी इराक अनुभव पर किताब
नई दिल्ली, 27 अप्रैल (आईएएनएस)। सन 1992 से 1994 तक इराक में भारत के राजदूत रहे रंजीत सिंह काल्हा ने अपने अनुभवों पर लिखी किताब में कहा है कि इराक में भारतीयों को सम्मान व इज्जत की नजर से देखा जाता है। किताब का नाम है-'द अल्टीमेट प्राइज : आयल एंड सद्दाम्स इराक'।
काल्हा ने अपनी किताब में लिखा है कि इराक जाने वाला कोई भी भारतीय वहां के लोगों द्वारा दिए जाने वाले सम्मान और भारत के प्रति उनकी शुभेच्छा से वंचित नहीं रह सकता।
उन्होंने लिखा है कि इराकी नागरिक भारत की प्राचीन संस्कृति, उसकी तकनीकी मजबूती और सुदृढ़ अर्थव्यवस्था से बहुत प्रभावित रहते हैं।
काल्हा ने कुछ ऐसे पहलुओं का भी जिक्र किया है जिन्हें आमतौर पर सब लोग नहीं जानते। मसलन, 1917 में इराक पर ब्रिटिश कब्जे के बाद रुपया वहां की आधिकारिक मुद्रा हो गई थी अथवा 1930 तक भारतीय डाक विभाग ने इराक की डाक व्यवस्था की देखरेख की।
काल्हा ने लिखा है कि छह दिसंबर 1992 को बाबरी मस्त्दि ढहाने के बाद वह काफी घबरा गए थे लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इराक में इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दी।
उन्होंने कहा कि कई सप्ताह बाद एक छोटे स्तर के अधिकारी ने हल्का सा विरोध दर्ज कराया था जो कि औपचारिकता मात्र था।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।