मंदी की आग में झुलस रहा भदोही कालीन उद्योग
वाराणसी, 27 अप्रैल (आईएएनएस)। कालीन उद्योग में कभी डालर बेल्ट के नाम से मशहूर भदोही कारपेट इंडस्ट्री भी आजकल विश्व आर्थिक मंदी की तपिश में झुलसने लगी है।
कारपेट एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल द्वारा दिए गए आकड़ों के अनुसार आज से दो वर्ष पहले तक भारत से पूरी दुनिया को होने वाले कालीन का निर्यात 2200 करोड़ रुपये सालाना का था जिसमें से 1800 करोड़ रुपये का कालीन सिर्फ भदोही और मिर्जापुर से जाता था। यही नहीं अमेरिका को भारत से होने वाले कालीन के निर्यात में 60 फीसदी हिस्सेदारी सिर्फ भदोही और मिर्जापुर की होती थी। लेकिन आज यह घटकर सिर्फ 30 फीसदी ही रह गया है।
हालात यह है कि यूरोप और अमेरिका में आई आर्थिक मंदी की आंच इस डालर बेल्ट में न सिर्फ महसूस की जाने लगी है बल्कि अब तो यह उद्योग मंदी की आग में झुलने भी लगा है।
कालीन निर्यातक अशोक कपूर इसका कारण बताते हुए कहते हैं कि अमेरिका में पिछले आठ दस महीने से जो आर्थिक संकट आया है उससे हमारे कालीन निर्यात पर सीधा असर पड़ा है क्योंकि कालीन लक्सरी आईटम है और वहां लोग पहले जरूरत के समान खरीद रहे हैं। लक्सरी समान की तरफ कम ध्यान दे रहे हैं इसलिए जो मॉल जहां पड़ा है वह वहीं पड़ा है।
भदोही और मिर्जापुर जिले की बनी हैण्ड नाटेड, हैण्ड ओवन, फ्लैटी (दरी), हैण्ड टफटेड कारपेट की नजाकत ने हमेशा से पूरी दुनिया में धूम मचाया है। बुनियादी सुविधाओं से दूर होने के बावजूद भी यह इलाका कालीन निर्यात में इतना आगे था कि इसे डालर बेल्ट कहा जाने लगा, क्योंकि यहां के बने कालीन की गुणवत्त का अमेरिका हमेशा से कद्रदान रहा है। लेकिन मंदी की मार ने कालीन की नजाकत और मुलायमियत से डालर को रिझाने वाले एक्सपोर्टेरों की जिंदगी में इस कदर कांटे बिखेर दिए हैं कि छोटे एक्सपोर्टर भी खत्म होने के कगार पर पहुंच गए हैं। साथ ही बड़े एक्स्पोर्टर भी इसकी मार से अन्दर तक हिल गए हैं।
कारपेट एक्स्पोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन रह चुके राजा राम गुप्ता ने बड़े दुखी मन से बताया कि पहले सरकार का ध्यान कारपेट इंडस्ट्री पर था वह निर्यात को बढ़ाने के लिए इन्सेनटिव की स्कीम चलाती थी। टैक्स में छूट देती थी, लेकिन अब सारी की सारी स्कीम खत्म कर दी गई हैं और ऊपर से अमेरिका सहित कई देशों में आई मंदी ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। इस कारण से कारपेट इंडस्ट्री में जो लोग लगे थे, चाहे एक्स्पोर्टर हों या लेबर सब अपने को असहाय महसूस कर रहे हैं।
अगर भदोही जिले में कालीन के एक्सपोर्ट का इतिहास देखा जाए तो यह 1920 से शुरू हुआ माना जाता है। उस वक्त छह कंपनिया यहां से कालीन एक्सपोर्ट करती थीं, जिनमें तीन ब्रिटिश और तीन भारतीय थीं। धीरे-धीरे यहां यह व्यवसाय इतना बढ़ा कि पूरे देश के कालीन व्यवसाय के छत्तीस सौ करोड़ के बिजनेस में सत्तर प्रतिशत की भागीदारी भदोही की हो गई और एक्सपोर्टर भी छह से बढ़कर 622 हो गए। लेकिन आज विश्व आर्थिक मंदी की वजह से भदोही से होने वाले कालीन के निर्यात में लगभग 30 फीसदी की गिरावट आ गई है। इसकी वजह से जहां एक तरफ इस व्यवसाय से जुड़े लाखों कालीन बुनकरों की हालत खराब हुई है, वहीं बड़े निर्यातकों की भी माली हालत चौपट हो गई है।
कालीन निर्यातक अशोक कपूर यह भी कहते हैं कि निर्यात पर असर मंदी की वजह से तो है ही साथ ही डालर के मुकाबले रुपये की मजबूती ने भी कालीन निर्यात के ग्राफ को गिराया है। श्री कपूर ने बताया कि इस साल डालर के मुकाबले रुपया 12 फीसदी मजबूत हुआ है। हालांकि सरकार की तरफ से 4 फीसदी की ड्यूटी ड्राबैक में छूट तो मिली है, लेकिन शेष 8 फीसदी की मार्जिन भी एक्स्पोर्टरों के लिए बहुत भारी पड़ रहा है।
कहते हैं कि कभी ईरान से आया कोई काफिला भदोही में ही रूका था, जिससे कालीन बुनने का हुनर यहां के बाशिंदों ने सीखा और उसके बाद यहां के बुनकरों के पुरखों ने उसे पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी मेहनत से सींच कर आज इस मुकाम पर पहुंचाया। चूंकि अभी तक इसके खरीदार मिलते रहे हैं, इसलिए इस क्षेत्र को भारत का डालर बेल्ट कहा जाने लगा। लेकिन आज बाजार में जिस तरह से मंदी आई है, उसे देखते हुए तो यहां के लोगों को लगने लगा है कि अगर हालात नहीं सुधरे तो एक तरफ जहां लाखों लोग बेरोजगार हो जायेंगे वहीं सदियों पुरानी इस कला को भी बचा पाना मुश्किल होगा।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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