नेपालः सत्ता संघर्ष का नया दौर
माओवादियों ने 601 सदस्यों वाली असेंबली में 220 सीटें जीती हैं। वह अपने नेता प्रचंड के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए अन्य दलों से सहमति कायम करने का प्रयास कर रहे हैं।
संविधान सभा के चुनावों में सबसे बड़े दल के रूप में उभरे माओवादियों ने कहा है कि जनादेश उनके पक्ष में है कि वह सरकार का नेतृत्व करें और नेपाल के नए संविधान के निर्माण को निर्देशित करें।
नेपाली कांग्रेस के नेताओं ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है और कहा है कि कोइराला को प्रधानमंत्री बने रहना चाहिए।
पूर्व प्रधानमंत्री शेरबहादुर देउबा और पूर्व योजना और कार्य मंत्री गोपालमान श्रेष्ठ ने कोइराला को प्रधानमंत्री बने रहने की वकालत करते हुए कहा है कि माओवादियों को स्पष्ट जनादेश नहीं मिला है और उनको सरकार का नेतृत्व करने की इजााजत नहीं दी जा सकती है।
श्रेष्ठ ने कहा कि प्रचंड तब तक नए प्रधानमंत्री नहीं बन सकते जब तक की वह माओवादी गुरिल्ला सेना के सर्वोच्च कमांडर हैं।
नेपाली कांग्रेस नेताओं ने मांग की है कि माओवादियों को तब तक सत्ता नहीं सौंपी जा सकती जब तक कि उनकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) हथियार नहीं डाल देती।
माओवादी सांसद प्रभाकर ने इसके उत्तर में कहा है कि शांति समझौते के अनुसार पीएलए का विलय सेना में होना है न कि उसे हथियार त्यागना है।
गौरतलब है कि अपने कमजोर स्वास्थ्य और परिवार के कई सदस्यों की हार के बावजूद कोइराला ने पार्टी प्रमुख और प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने की पेशकश नहीं की है, जबकि यूएमएल प्रमुख माधव कुमार नेपाल को अपनी हार के बाद पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
माओवादी राजा ज्ञानेंद्र और प्रधानमंत्री कोइराला दोनों को पद से हटाना चाहते हैं। कोइराला को भारत, ब्रिटेन और अमेरिका सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से समर्थन मिल रहा है।
नेपाल में भारत के राजदूत नियुक्त होने के 48 घंटे के भीतर राकेश सूद ने कोइराला और देउबा से भेंट की है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।