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बनबसा बाजार में आधी रात के बाद आती है रौनक

By Staff
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बनबसा, 27 अप्रैल (आईएएनएस)। चंपावत जिले में नेपाल सीमा पर बसा बनबसा कस्बा दिन में सोता और रात को जागता है। अत्याधुनिक बाजार में दिन के सन्नाटे के विपरीत अर्धरात्रि के बाद रोज मेले जैसी रौनक रहती है।

बनबसा, 27 अप्रैल (आईएएनएस)। चंपावत जिले में नेपाल सीमा पर बसा बनबसा कस्बा दिन में सोता और रात को जागता है। अत्याधुनिक बाजार में दिन के सन्नाटे के विपरीत अर्धरात्रि के बाद रोज मेले जैसी रौनक रहती है।

नाइट मार्केट अर्थात रात्रिकालीन बाजार का यह सिलसिला कई शताब्दियों से चला आ रहा है। बनबसा के पुराने व्यापारी फिरोज खान के अनुसार शाम से दुकानें सिमटने की प्रथा के विपरीत यहां अर्धरात्रि के बाद बाजार सजने के अजूबे की वजह है सीमा बनाने वाली विशालकाय शारदा नदी पर आवागमन हेतु बने पुल का रात में बंद होना।

देश के विभिन्न महानगरों में मजदूरी आदि करने वाले नेपाली नागरिक छुट्टियां बिताने स्वदेश लौटते समय यहां शाम को ही पहुंचते है। अगले दिन प्रात: 6 बजे तक पुल बन्द होने के कारण उन्हें पुल खुलने तक बनबसा में ही रुकना पड़ता है। कुछ घंटों के लिए होटल में टिकने पर अपनी गाढ़ी कमाई न खर्च करने की मजबूरी का वषों पूर्व फायदा उठाते हुए दुकानदारों ने उनके लिए आधी रात के बाद से अपनी दुकानें खोलनी प्रारम्भ कर दी।

देखते ही देखते बनबसा में रातें जगमगातीं और दिन फीके होने लगे। स्थिति यह है कि यहां दिन में सन्नाटा तथा रात भर मेला लगा रहता है। भारत के विभिन्न पर्यटन तथा औद्योगिक महानगरों में जहां-जहां नेपाली कार्यरत हैं वहां से इस दूरस्थ स्थान तक घरेलू सामान साथ लाने अथवा महानगरों की चकाचौंध में सामान महंगा मिलने की धारणा के कारण यहां से समान सस्ते में खरीदने की नेपालियों की सदैव लालसा रहती है।

खाली वक्त कटने के साथ ही घर के पास सामान सस्ते में मिलने का उन्हें छोटे से रात्रि बाजार से दोहरा फायदा होता है। ब्रिटिश काल से ही आवागमन हेतु प्रतिदिन तीन बार अलग-अलग समय पर केवल एक-एक घंटे हेतु खुलने वाले अंर्तराष्ट्रीय पुल का अंग्रेजों ने 1929 में निर्माण कराया था। मित्र देश होने के कारण आम जनमानस को दोनों देशों के मध्य आने-जाने हेतु किसी कागजात की आवश्यकता न पड़े इसके लिए बाद में भारत-नेपाल के बीच मुक्त पारगमन समझौता हुआ। खासकर नेपालियों द्वारा भारत में प्रवेश करने हेतु इस पुल का व्यापक प्रयोग किया जाने लगा। नेपाल के दूरस्थ स्थानों से भारत प्रवेश हेतु यह मार्ग सर्वाधिक सुगम माना जाता है।

व्यापारी नेता एस.एन. गोयल ने बताया कि समीपस्थ के अन्य नेपालियों ने भी इसी बाजार से अपनी आवश्यक खरीदारी शुरू कर दी। बनबसा से सटे प्रमुख नेपाली बाजार महेन्द्रनगर के उद्योग वाणिज्य संघ अध्यक्ष एस.पांडे ने बताया कि विभिन्न स्थानों से प्रत्येक रात बनबसा पहुंचने वाली सैकड़ों यात्री बसों में अधिकतम सवारियां नेपाली श्रमिक होने के कारण यह सीमांत कस्बा नेपाली ग्राहकों से रात भर गुलजार रहने के साथ ही खास मौकों पर नेपालियों द्वारा की जाने वाली खरीदारी से यहां चहल-पहल और भी बढ़ जाती है।

व्यावसायिक रिश्तों के साथ सीमांत क्षेत्रो के लोगों के मध्य भाषा और संस्कृति की एकरूपता की वजह से परस्पर रोटी-बेटी के रिश्ते हैं। काली(शारदा)नदी के किनारे बसा बनबसा कई वषरें पूर्व अस्तित्व में आ गया था। अस्सी के दशक के बाद से तो यहां नेपालियों की रेलमपेल होने लगी। दुकानदार नेपाली श्रमिकों हेतु सस्ती कीमत की घरेलू सामग्री हर समय उपलब्ध कराने के अतिरिक्त उनकी जरूरतों को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए अपनी दुकानें सजाते हैं।

नेपाल में उपभोक्ता वस्तुओं की कमी व कीमतों में अंतर को देखते हुए अधिकांश ग्राहक तो नेपाल से प्रतिदिन बनबसा केवल खरीदारी हेतु ही आते हैं। औसतन प्रतिदिन बीस हजार नेपालियों का बनबसा से आवागमन होता है। भारत के दूरदराज से आने वाली बसों के यहां अर्धरात्रि तक पंहुचने के कारण बाजार रात में जगमगा उठता है। रात की चांदनी तथा बल्बों के मध्य होटलों पर बजने वाले नेपाली गानों से तो नेपाली मेले का दृश्य दिखता है।

यहां तमाम उपभोक्ता वस्तुओं की दुकानें रोज रात को दुल्हन की तरह सजती है। ग्राहकों को आर्कषित करने हेतु नए-नए हथकंडे अपनाने के कारण यहां और भी चमक रहती है। कस्टम अधीक्षक ने बताया कि मुक्त पारगमन सन्धि में भारत से घरेलू उपभोक्ता वस्तुओं को नेपाल ले जाने की कस्टम में खूली छूट के कारण नेपालियों द्वारा बनबसा से जमकर खरीदारी की जाती है।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

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