क्लस्टर बम बने मासूमों के लिए आफत
क्लस्टर बम करीब 600 वर्गमीटर के क्षेत्र में फैल जाते हैं। युद्ध के समय दुश्मन को निशाना बनाने में बहुत उपयोगी साबित होने वाले इन बमों में से कुछ उस समय नहीं फट पाते।
संघर्ष की समाप्ति के दशकों बाद भी इन बमों से नागरिकों को खतरा बना रहता है। इनसे संघर्ष वाले क्षेत्रों में बच्चों को भी काफी खतरा है। क्योंकि इनके आकर्षक आकार और रंग के कारण वह अधिक जल्दी इन बमों की ओर आकर्षित हो जाते हैं।
विश्व के 34 देश 210 तरह के क्लस्टर बमों का निर्माण करते हैं। भारत भी उन देशों में से एक है। पूरी दुनिया में क्लस्टर बमों पर रोक लगाने के लिए नागरिकों में जागरूकता पैदा के करने के लिए मानव अधिकार और नागरिक संगठन प्रयास कर रहे हैं।
क्लस्टर बमों के खतरे की भयावहता का अंदाज केवल लेबनान के उदाहरण से ही समझा जा सकता है जहां 1960 से 70 के बीच करीब 27 करोड़ क्लस्टर बम गिराए गए थे। इनमें से करीब एक करोड़ बम नहीं फटे। तमाम प्रयासों के बवजूद 1996 तक केवल 364,000 बम ही निष्क्रिय जा सके हैं। यह बम आज भी वहां के नागरिकों को मार रहे हैं।
दक्षिणी लेबनान में 2006 में चले 34 दिन के संघर्ष में करीब 10 लाख क्लस्टर बम तीन करोड़ वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्र पर गिराए गए। इसके कारण अभी तक 200 नागरिक मारे या घायल हो चुके हैं।
कोसोवो (1999), अफगानिस्तान (2001),इराक (2003),और लेबनान(2006)के ताजा संघर्षो ने क्लस्टर बमों पर रोक लगाने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को तेज करने में योगदान किया है। रेडक्रास सहित 70 देशों के 250 नागरिक संगठनों ने इस साल के अंत तक क्लस्टर बमों पर रोक लगाने के लिए एक कानूनी संधि करने की समय सीमा तय की है।
क्लस्टर बमों पर रोक लगाने के लिए कई सरकारें भी आगे आ रही हैं। फरवरी 2007 में नार्वे की राजधानी ओस्लो में 46 देशों ने इस प्रस्ताव पर सहमति प्रकट की थी कि 2008 के अंत तक दन बमों पर रोक केलिए कोई कानूनी संधि कर ली जाएगी। इस संबंध में एक आयरलैंड की राजधानी डबलिन में एक सम्मेलन का आयोजन मई 2008 में किया जाएगा। बेल्जियम 16 फरवरी 2006 को क्लस्टर बमों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने वाला विश्व का पहला देश बन गया है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस