भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए लगता है मेला!
यह मेला चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के पहले दिन से लगता है, जो पूर्णिमा तक चलता है। भूत-प्रेत से पीड़ित लोग यहां आकर स्थानीय पंडों (ओझाओं) से झाड़-फूंक करवाते हैं। कैमूर के हरशुब्रह्म धाम में ऐसा ही मेला लगता है। ओझा पीड़ित महिलाओं का बाल पकड़ कर पूछता है कौन हो? कई पीड़िता बोलती है अस्कामीन तो कई कहती है ब्रह्म। नहीं बोलने पर ओझा डंडा बरसाता है। इस धाम के पंडा राजकेश्वर त्रिपाठी बताते हैं हरशु ब्रह्मधाम 'सर्वोच्च' है। जब प्रेत बाधा से पीड़ित लोग कहीं ठीक नहीं होते हैं तो उनकी सुनवाई बाबा के धाम पर ही होती है।
ऐसा ही एक मेला झारखंड के पलामू जिले के हैदरनगर में लगता है। यहां एक देवी मंदिर है। उसी के आस-पास दर्जनों ओझा पीड़ितों से प्रश्न करते रहते हैं। ऐसा लगता है कि ये महिलायें अपने आप में हैं ही नहीं। मंदिर में ऐसे ही इलाज के लिए आए औरंगाबाद जिले के निवास तिवारी बताते हैं कि यह सत्य है उनके साथ भूत-प्रेत बाधा से पीड़ित उनकी बहन आई है। देवी की कृपा से यहां वह एक ही दिन में ठीक हो गई।
मंदिर परिसर में पूरे एक पखवारे (रात को छोड़ कर) भूत खेला रही कोई महिला रोती है, तो कई हंसती रहती है और कोई सुमरते (गीत गाती) रहती है। एक छोटा सात वर्षीय बालक रोहन तो दनादन सिगरेट पी रहा था। यहां एक ओझा पंडित दिन दयाल ओझा बताते हैं कि इस ऐतिहासिक मंदिर में प्रत्येक वर्ष इस समय और दशहरा में काफी भीड़ लगती है। देवी मंदिर के बगल में एक पीपल का पेड़ है जहां जाकर पीड़ितों द्वारा एक कील गाड़ दिया जाता है। लोगों की मान्यता है कि इसी कील के जरिये भूत-प्रेत को पेड़ में डाल दिया जाता है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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