माया की लोकप्रियता, मुलायम के तेवर दांव पर
इस चुनाव के जरिए मतदाता मुख्यमंत्री मायावती की लोकप्रियता, नेता प्रतिपक्ष मुलायम सिंह के जुझारू तेवर, सशक्त चुनौती पेश करने की भाजपाई ललक और मृतप्राय अवस्था में किसी संजीवनी की प्रतीक्षा कर रही कांग्रेस के बारे में अपनी राय शुमारी देंगे।
यूं तो उपचुनाव को किसी सरकार की लोकप्रियता का पैमाना नहीं माना जाता लेकिन इसके बावजूद नतीजों को लेकर न केवल सांकेतिक निश्कर्ष निकाले जाते हैं बल्कि यह राजनीतिक आरोप-प्रत्त्यारोप का आधार भी बनते हैं।
बारह अप्रैल को आजमगढ़ और खलीलाबाद लोकसभा तथा हरदोई जिले की बिलग्राम, गोण्डा की करनैलगंज और गाजियाबाद की मुरादनगर विधानसभा सीटों के लिए वोट पड़ेंगे और साथ ही इस बात का संकेत मिलेगा कि 11 महीने के मायावती शासन में सियासी बयार का रूख किस ओर है।
खास बात यह है कि इन सभी सीटों पर तकरीबन वही चेहरे हैं जो पिछले चुनाव के दौरान भी थे। कहीं-कहीं बस फर्क यह हुआ है कि अब उनके पाले बदले हुए हैं। बात खलीलाबाद लोकसभा सीट की जहां गत चुनाव में बसपा के टिकट पर भालचंद्र यादव ने सपा प्रत्याशी भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी को हराया था|
12 अप्रैल को मतदाता सपा उम्मीदवार भालचंद्र यादव और बसपा प्रत्याशी कुशल तिवारी के बीच फैसला करेंगे यद्यपि मैदान में भाजपा के चन्द्रशेखर पाण्डेय और कांग्रेस के संजय जायसवाल सहित 20 उम्मीदवार हैं लेकिन सीधा मुकाबला सपा-बसपा में ही है।
गोण्डा की करनैलगंज विधान सभा सीट पर 11 महीने पहले अजय प्रताप सिंह उर्फ लल्ला भैया कांग्रेस के टिकट पर जीते थे लेकिन वह विधानसभा के भीतर ही कांग्रेस और विधायक पद से इस्तीफ देकर बसपा के हाथी पर सवार हो गए। अब उनकी बहन कुंवरी बृज सिंह बसपा से चुनाव लड़ रही हैं और उनका मुकाबला सपा के योगेश प्रताप सिंह से है। कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों सहित यहां कुल 16 उम्मीदवार हैं लेकिन प्रेक्षकों का मानना है कि अंतत: संघर्ष सपा-बसपा के बीच ही सिमट कर रह जाएगा।
हरदोई की बिलग्राम विधानसभा सीट पर भी सीघी लड़ाई सपा-बसपा के बीच ही है। सपा ने विश्राम सिंह यादव को फिर से टिकट दिया है। पूर्व विधायक यादव गत चुनाव में बसपा के उपेन्द्र तिवारी से हार गए थे किन्तु अब उनका मुकाबला रजनी तिवारी से है जो अपने पति के निधन के बाद उनकी सियासी विरासत बरकरार रखने के लिए मैदान में हैं। यहां मैदान में कुल 13 प्रत्याशी हैं।
अलबत्ता गाजियाबाद की मुरादनगर सीट पर परिदृश्य जरूर बदला हुआ है। यहां गत चुनाव में निर्दलीय चुनाव जीतने वाले राजपाल त्यागी इस चुनाव में बसपा के हाथी पर सवार हैं और यूं तो उनका रास्ता कुल 13 प्रत्याशी रोक रहे हैं लेकिन प्रेक्षकों के अनुसार सबसे मजबूत चुनौती राष्ट्रीय लोकदल के कुंवर अयूब अली पेश कर रहे हैं।
रही बात आजमगढ़ की तो यहां त्रिकोणीय मुकाबला है लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि यह अंतत: भाजपा और बसपा के बीच सीधे मुकाबले में तब्दील हो सकता है। गत चुनाव में बसपा के टिकट पर यहां जीते और पूर्व में दो बार सपा के टिकट पर लोकसभा पहुंच चुके रमाकांत यादव भाजपा उम्मीदवार हैं तो बसपा को ओर से पूर्व सांसद अकबर अहमद डम्पी मैदान में हैं जबकि सपा ने पूर्व मंत्री बलराम यादव पर भाग्य आजमाया है।
आजमगढ़ में कुल 15 प्रत्याशी मैदान में हैं जिनमें कांग्रेस के एहसान खां भी हैं। हाल के दिनों में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के लगातार सुर्खियों में रहने के बावजूद कांग्रेस के लिए उपचुनाव में जमानत बचा पाना किसी चुनौती से कम नहीं है।
खुद कांग्रेस इन चुनावों को लेकर कितनी गम्भीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चुनाव प्रचार के दौरान पुलिस ने एहसान खां को थाने में बंद कर दिया और इसके फोटो भी अखबारों में छपे लेकिन एक मुस्लिम प्रत्याशी के साथ हुए इस व्यवहार को राहुल गांधी सहित किसी कांग्रेसी नेता ने मुद्दा बनाने की कोशिश नहीं की।
जबकि पार्टी के लोग मानते हैं कि जितनी तत्परता राहुल गांधी ने इटावा के दलित परिवार के घर जाने में दिखायी थी उतनी ही इस मामले में भी दिखानी चाहिए थी क्योंकि पार्टी के लिए जितना महत्व दलित वोट बैंक का है उतना ही मुस्लिम वोट का भी है।