झारखंड में कम हो रही वनों की संख्या

By Staff
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रांची, 10 अप्रैलः कभी वन संपदाओं से परिपूर्ण झारखंड राज्य में अब खनिज पदार्थो व वन संपदा के बीच असंतुलन साफ दिखाई देने लगा है। राज्य सरकार की वेबसाइट के अनुसार राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 29 प्रतिशत वनों से आच्छादित है।

यह आंकड़ा वन विभाग द्वारा 2003 में 30 प्रतिशत बताया गया था। इनमें 82 प्रतिशत संरक्षित वन 17 प्रतिशत सुरक्षित और शेष 3349 हेक्टयर इलाका अवर्गीकृत वनों का है। राज्य की दामोदर घाटी में कभी 65 प्रतिशत घना वन क्षेत्र हुआ करता था, जो आज घट कर मात्र 0.05 प्रतिशत रह गया।

भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार 1997 के आकलन में झारखंड में 26 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र था, लेकिन 1999 आते-आते तक यह आंकड़ा 22 लाख हेक्टेयर हो गया। इसी तरह राज्य के कुल वन क्षेत्र का 17 प्रतिशत भाग पश्चिम सिंहभूम जिले में है।

यह वही जिला है जो 99 प्रतिशत लौह अयस्क की उपज देता है। यही स्थिति हजारीबाग जिले की है जो दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक जिला है। इसका लगभग 35 प्रतिशत हिस्सा वनों से पटा है।

केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग में जो आंकड़े उपलब्ध हैं उसके अनुसार 1985 से 2004 की अवधि में झारखंड में नौ हजार हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र खनन के काम में लाया गया है। यह देश में खनन के लिए आवंटित कुल वन क्षेत्र का दसवां हिस्सा है।

धनबाद जिले में भी दशकों से जारी खनन उद्योग के कारण वन क्षेत्र घट रहे हैं। झारखंड के पर्यावरणविद् डा. प्रसनजीत सरकार का मानना है कि पर्यावरण संतुलन के लिए किसी भी क्षेत्र में 35 प्रतिशत वन होना लाजिमी है परंतु इस राज्य में यह प्रतिशत नीचे चला गया है।

उन्होंने कहा कि इन इलाकों में खनन कार्य जरूर किए जा रहे हैं, परंतु वे वैज्ञानिक तरीके से नहीं हो रहे हैं।

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