यूपी में आलू किसानों को भारी नुकसान

By Staff
Google Oneindia News

potato farmers
लखनऊ, 7 अप्रैलः समस्या को भांपने में देर कर चुकी उत्तर प्रदेश सरकार ने चार अप्रैल से बाजार हस्तक्षेप योजना लागू तो कर दी है लेकिन यह योजना आलू की खेती करने वाले किसानों के लिए ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हो रही है। तमाम सरकारी दावों के बावजूद अब तक सभी जगहों पर क्रय केंद्र भी नहीं खुले हैं जहां खुले हैं वहां ग्रेडेड आलू ही खरीदा जा रहा

आलू को लेकर किसानों में मची खलबली के बाद प्रदेश सरकार ने चार अप्रैल को बाजार हस्तक्षेप योजना लागू करने की घोषणा की थी। प्रथम चरण में यह योजना सहारनपुर, मेरठ, बुलंदशहर, अलीगढ़ समेत 29 जिलों में लागू की गयी है।

इस योजना कि तहत पीसीएफ, यूपी एग्रो और औद्योगिक उत्पादन सहकारी विपणन संघ का आलू खरीदने के लिए के इन संस्थाओं को कार्यशील पूंजी दी गयी है। इस प्रक्रिया में संस्थाओं को जो हानि होगी उसका वहन प्रदेश सरकार तथा भारत सरकार द्वारा 50-50 प्रतिशत के आधार पर किया जायेगा।

प्रदेश के पूर्व कृषि मंत्री डा़ अशोक वाजपेयी ने कहा, "बाजार हस्तक्षेप योजना तो अब 'का वर्षा जब कृषि सुखाने' जैसी ही है।" उन्होंने कहा कि सरकार ने समय रहते आलू को निर्यात करने का कोई इंतजाम नहीं किया और आलू ऐसा उत्पाद नहीं जिसे किसान घर में रखे रहें। सरकार की गलत नीतियों के चलते आलू के किसानों का भारी नुकसान हुआ है।

इस बार आलू उत्पादन में खासी बढ़ोत्तरी का पूर्व अनुमान न लगा पाना भी परेशानी का कारण बना। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा आलू उत्पादक राज्य है। देश के कुल आलू उत्पादन का लगभग 42 से 45 प्रतिशत हिस्सा उत्तर प्रदेश में ही पैदा होता है। वर्ष 2007-08 में प्रदेश में 50.3 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग 130 लाख मी0 टन आलू का उत्पादन हुआ है जबकि गत वर्श 100.27 लाख मी0 टन आलू पैदा हुआ था।

प्रदेश में इस समय 1316 निजी शीतगृह हैं जिनकी भण्डारण क्षमता कुल मिलाकर लगभग 91 लाख मी0 टन है। इसके अतिरिक्त दिसंबर से मई माह तक लगभग 25 लाख मी0 टन आलू प्रदेश में ही खपत हो जाता है। प्रदेश के शीत गृहों में अब भण्डारण क्षमता नहीं बची है।

अब हालत यह है कि किसान का आलू मंडियों में औने-पौने दामों पर बेचा जा रहा है। बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत सरकार ने 250 रुपये प्रति कुंटल का खरीद मूल्य तय किया है क्योंकि इस योजना का उद्देश्य यही है कि किसान को कम से कम उसकी लागत का तो मूल्य मिल सके।

मुश्किल यह है कि इस योजना में केवल ग्रेडेड आलू (बड़े आकार का ) ही खरीदे जाते हैं जो केवल 30-35 प्रतिशत ही होता है। शेष आलू मंडियों में जाता है जहां उनकी कीमत 125 से लेकर 150 रुपये तक ही मिलती है। ऐसे में जब अधिकांश आलू बिक चुका है सरकार के हस्तक्षेप के बावजूद किसान का कोई खास भला नहीं होने वाला।

Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X